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Saturday 26 May 2018

*इफ्तार की दुआ*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

اٙلـلّٰـهُـمّٙ اِنّـِـىْ لٙكٙ صُـمْـتُ وٙبِـكٙ اٰمٙـنْـتُ وٙعٙـلٙـيْـكٙ تٙـوٙ كّٙـلْـتُ وٙعٙـلٰـى رِزْقِـكٙ اٙفْـطٙرْتُ
     *तर्जमा* : ऐ अल्लाह में ने तेरे लिये रोज़ा रखा और तुझही पर ईमान लाया और तुझही पर भरोसा किया और तेरे दिये हुए रिज़्क़ से रोज़ा इफ्तार किया।

يا وَاسِعَ الْمَغْفِرَةِ اِغْفِرْلِي

*तर्जमा* : ऐ वसी मगफिरत वाले मेरी मगफिरत फरमा।
     ये दुआ खाने के एक लुकमे के बाद पढ़े, ये सिर्फ रमज़ान के लिये नहीं बल्कि जब भी खाना खाये इस दुआ को पढ़ लिया जाये।

     *नोट :* ये दुआ खजूर खाने के बाद पढ़े। जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ले।

*रमज़ान की बरक़त :*      
     इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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