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Friday 11 May 2018

*चार उलमा ओर एक बादशाह* (हिकायत)
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक رحمة الله عليه फरमाते है: एक बादशाह के यह चार उल्माए किराम जमा हुवे तो बादशाह ने उन से अर्ज़ की: आप हज़रात एक एक मुख़्तसर ओर जामेअ बात इरशाद फरमाइये।
     उनमे से एक नए फ़रमाया: उलमा का अफ़ज़ल इल्म खामोशी है।
     दूसरे ने कहा: आदमी के लिये सब से बढ़कर नफामन्द बात यह है कि वो अपनी हैसिय्यत ओर अक़्ल की इन्तिहा (गहराई) को जान ले और उसके मुताबिक़ गुफ्तगू करे।
     तीसरे ने फरमाया: सबसे बढ़कर मोहतात वो शख्स है जो न तो मौजूदा नेमत पर मुतमइन हो, न उस पर भरोसा कर ओर उस के लिये कोई तकलीफ भी न उठाएं।
     चौथे ने फरमाया: तक़दीर पर राज़ी रहने और क़नाअत इख्तियार करने से बढ़ कर कोई शै बदन के लिये आराम देह नहीं।
*✍एक चुप सौ सुख* 16
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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