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Saturday 23 June 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #169


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*यूसुफ عليه السلام एक मर्तबा फिर इम्तेहान में*
     ज़ुलैख़ा ने अगरचे चाहा कि आप को गुनाहों में मुब्तला कर दे लेकिन अल्लाह के नबी क़ब्ल अज़ नबुव्वत व नबुव्वत के बाद हर छोटे बड़े गुनाहों से पाक होते हैं इसलिये अल्लाह ने आप عليه السلام को वाज़ेह ओर रौशन दलील दिखाकर पाक व साफ रखा।
     आप عليه السلام ने दलील क्या देखी थी? एक तो यह देखा कि वह औरत दरवाज़ा बंद करके अपने एक बूत को ढांप रही है, वह जो उसने अपना माबूद बना रखा था और मोती ओर याकूत से उसे सजा रखा था।
     आप عليه السلام ने उससे पूछा तुम इसे क्यों ढांप रही हो? उसने कहा मुझे अपने माबूद से शर्म आती है कि वह मुझे बुराई में मुब्तला देखे, आपने फ़रमाया तेरा माबूद तो कुछ ताक़त नहीं रखता, तुझे इससे शर्म आ रही है, क्या मुझे उस माबूदे हक़ीक़ी से शर्म नहीं आती जो हर इंसान के हर अमल को देख रहा है? मुझसे अपनी उम्मीद वाबस्ता न कर, तू कभी भी मुझसे अपनी हाजत में कामयाब नहीं हो सकती।
*✍तज़किरतुल अम्बिया* 132
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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