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Saturday 17 November 2018

*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #01

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_बरकाते दुरुदो सलाम_*

     उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में वक़्ते शहर कुछ सी रही थी कि मेरे हाथ से सुई गिर गई और चराग बुझ गया। इतने में हुज़ूरﷺ तशरीफ़ ले आए, आप के चेहरए ज़ियारत के अनवार से सारा कमरा जगमगा उठा और सुई मिल गई।

     मेने अर्ज़ की य या रसूलल्लाह ﷺ ! आप का चेहरए अनवर कितना रोशन है। तो आप ने इरशाद फ़रमाया : ऐ आइशा ! हलाकत है उस के लिये जो बरोज़े क़यामत मुझे न देखेगा। मेने अर्ज़ की : बरोज़े क़यामत आप की ज़ियारत से कौन महरूम रहेगा ? इरशाद फ़रमाया : बखिल। मेने पूछा : या रसूलल्लाहﷺ ! बखिल कौन है ?

     इरशाद फ़रमाया : जो मेरा नाम सुन कर मुझ पर दुरुदे पाक न पढ़े।

*✍🏼फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 11*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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