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Tuesday 27 November 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑥②*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

हमेशा रहेंगे उसमें न उनपर से अज़ाब हल्का हो और न उन्हें मोहलत दी जाएं.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑥③*

     और तुम्हारा मअबूद एक मअबूद है (13) उसके सिवा कोई मअबूद नही मगर वही बड़ी रहमत वाला महेरबान.


तफ़सीर :

      (13) काफ़िरों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, आप अपने रब की शान और सिफ़त बयान कीजिये. इसपर यह आयत उतरी और उन्हें बता दिया गया कि मअबूद सिर्फ़ एक है न उसके टुकडे हो सकते हैं, न उसको बाँटा जा सकता है, न उसके लिये मिस्ल न नज़ीर. पूजे जाने और रब होने के मामले में कोई उसका शरीक नहीं, वह यकता है, अपने कामों में. चीज़ों को तनहा उसीने बनाया, वह अपनी ज़ात में अकेला है, कोई उसका जोड़ नहीं. अपनी विशेषताओं और गुणों में वह यगाना है, कोई उस जैसा नहीं. अबूदाऊद और तिरमिज़ी की हदीस शरीफ़ में है कि अल्लाह तआला का इस्में आज़म इन दो आयतों में है. एक यही आयत “व इलाहोकुम” दूसरी “अलिफ़ लाम मीम अल्लाहो लाइलाहा इल्लाहुवा……….”

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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