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Wednesday 28 November 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-20, आयत, ①⑥④*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

बेशक आसमानों (1) और ज़मीन की पैदायश और रात व दिन का बदलते आना और किश्ती कि दरिया में लोगों के फ़ायदे लेकर चलती है और वह जो अल्लाह ने आसमान से पानी उतार कर मुर्दा ज़मीन को उससे ज़िन्दा कर दिया और ज़मीन में हर क़िस्म के जानवर फैलाए  और हवाओ की गर्दिश (चक्कर)  और वह बादल कि आसमान व ज़मीन के बीच में हुक्म का बांधा है इन सब में अक़लमन्दों के लिये ज़रूर निशानियां हैं.


*तफ़सीर*

     (1) काबए मुअज़्ज़मा के चारों तरफ़ मुश्रिकों के 360 बुत थे, जिन्हें वो मअबूद मानते थे. उन्हें यह सुनकर बड़ी हैरत हुई कि मअबूद सिर्फ़ एक है, उसके सिवा कोई मअबूद नहीं. इसलिये उन्होंने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से ऐसी आयत तलब की जिससे अल्लाह के एक होने पर सही दलील हो. इस पर यह आयत उतरी. और उन्हें बताया गया कि आसमान और उसकी बलन्दी और उसका बिना किसी खम्भे और इलाक़े के क़ायम रहना, और जो कुछ उसमें नज़र आता है, चाँद सूरज सितारे वग़ैरह, ये तमाम और ज़मीन और इसका फैलाव और पानी पर टिका हुआ होना और पहाड़, दरिया, चश्मे, खानें, पेड़ पौधे, हरियाली, फल और रात दिन का आना जाना घटना बढ़ना, किश्तियाँ और उनका भारी बोझ और वज़न के साथ पानी पर चलते रहना और आदमियों का उनपर सवार होकर दरिया के चमत्कार देखना और व्यापार में उनसे माल ढोने का काम लेना और बारिश और इससे ख़ुश्क और मुर्दा हो जाने के बाद ज़मीन का हरा भरा करना और नई ज़िन्दगी अता करना और ज़मीन को क़िस्म क़िस्म के जानवरों से भरदेना, इसी तरह हवाओं का चलना और उनकी विशेषताएं और हवा के चमत्कार और बादल और उसका इतने ज़्यादा पानी के साथ आसमान और ज़मीन के बीच टिका रहना, यह आठ बातें हैं जो क़ुदरत और सर्वशक्तिमान अल्लाह के इल्म और हिकमत और उसके एक होने को साबित करती हैं. ये चीज़ें ऊपर बयान हुई ये सब संभव चीज़े हैं और उनका अस्तित्व बहुत से विभिन्न तरीक़ों से मुमकिन था. मगर वो मख़सूस शान से अस्तित्व में आईं. यह प्रमाण है कि ज़रूर उनके लिये कोई ईजाद करने वाला भी है. सर्वशक्तिमान अल्लाह अपनी इच्छा और इरादे से जैसा चाहता है बनाता है, किसी को दख़ल देने या ऐतिराज की मजाल नहीं. वो मअबूद यक़ीनन एक और यकता है, क्योंकि अगर उसके साथ कोई दूसरा मअबूद भी माना जाए तो उसको भी यह सब काम करने की शक्ति रखने वाला मानना पड़ेगा. असरदार बनाए रखने में दोनों एक इरादा, एक इच्छा रखने वाले होंगे या नहीं होंगे. अगर हों, तो एक ही चीज़ की बनावट में दो असर करने वालों को असर करना लाज़िम आएगा और यह असम्भव है. और अगर यह फ़र्ज़ करो कि तासीर उनमें से एक की है, तो दूसरे की शक्तिहीनता ठहरेगी, जो मअबूद होने के ख़िलाफ़ है. और अगर यह होगा कि एक किसी चीज़ के होने का इरादा करे और दूसरा उसी हाल में उसके न होने का, तो वह चीज़ एक ही हाल में मौजूद या गै़रमौजूद या दोनों न होगी. ज़रूरी है कि या मौजूदगी होगी या ग़ायब, एक ही बात होगी. अगर मौजूद हुई तो ग़ायब का चाहने वाला शक्तिहीन ठहरे और मअबूद न रहे, और अगर ग़ायब हुई तो मौजूद का इरादा करने वाला मजबूर रहा, मअबूद न रहा. लिहाज़ा यह साबित हो गया कि “इलाह” यानी मअबूद एक ही हो सकता.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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