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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*अच्छी सूरत पर महमूल करो*
जलीलुल कद्र ताबेई हज़रते सय्यदुना सईद बिन मुसय्यब رضي الله عنه फरमाते हैं : “अस्हाबे रसूल में से मेरे बाज भाइयों ने मुझे लिख कर भेजा कि अपने मुसल्मान भाई के फेल को अच्छी सूरत पर महमूल करो जब तक उस के खिलाफ कोई दलील गालिब न हो जाए और किसी मुसल्मान भाई की जुबान से निकलने वाले कलिमे को उस वक्त तक बुरा गुमान न करो जब तक कि तुम उसे किसी अच्छी सूरत पर महमूल कर सकते हो और जो खुद अपने आप को तोहमत के लिये पेश करे उसे अपने सिवा किसी को मलामत नहीं करनी चाहिये।
*✍️शुउबुल ईमान* 6/323
हज़रते उमर बिन खत्ताब رضي الله عنه का फरमान है : “अपने भाई की जुबान से निकलने वाले कलिमात के बारे में बद गुमानी मत करो जब तक कि तुम उसे भलाई पर महमूल कर सकते हो.
*✍️अददुर्रूल मन्सूर*
इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत अश्शाह मौलाना अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه फतावा रजविय्या शरीफ में लिखते हैं : “मुसल्मान का हाल हत्तल इम्कान सलाह (यानी अच्छाई) पर हम्ल करना (यानी गुमान करना) वाजिब।
*✍️फतावा रजविय्या* 19/691
हज़रत नईमुद्दीन मुरादाबादी رحمة الله عليه लिखते हैं : “मोमिने सालेह के साथ बुरा गुगान ममनु है इस तरह (कि) उस का कोई कलाम सुन कर फासीद माना मुराद लेना बा वुजूद येह कि उस के दूसरे सहीह माना मौजूद हों और मुसल्मान का हल उन के मुवाफिक हो येह भी गुमाने बद में दाखिल है।
*✍️खज़ाइनुल इरफान*
*मुसल्मान से हुस्ने जुन रखना मुस्तहब है*
अल्लामा अब्दुल गनी नाबल्सी رحمة الله عليه लिखते हैं : जब किसी मुसल्मान का हाल पोशीदा हो (यानी उस के नेक होने का भी एहतिमाल हो और बद होने का भी) तो उस से हुस्ने ज़न रखना मुस्तहब और उस के बारे में बद गुमानी हराम है।
*✍️अल हुदी*
*✍️बद गुमानी* 50
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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