*ताज़ीम* #17
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*तर्जमए कन्जुल ईमान* : _रसूल के पुकारने को आपस में ऐसा न ठहरा लो जैसा तुम में एक दूसरे को पुकारते है।_
*तफ़्सीरे कबीर में है*
" नबिय्ये अकरम ﷺ को इस तरह न पुकारो जैसे तुम एक दूसरे को पुकारते हो। यूं न कहो : या मुहम्मद! या अबल क़ासिम! बल्कि अर्ज़ करो या रसूलुल्लाह, या नबिय्यल्लाह" (यानी नबिय्ये अकरम ﷺ को नाम या कुन्यत से न पुकारो बल्कि अवसाफ़ और अल्क़ाब से याद करो)
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 44
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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