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Monday 22 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-14, आयत, ①②①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

जिन्हें हमने किताब दी है वो जैसी चाहिये उसकी तिलावत (पाठ) करते है वही उस पर ईमान रखते है और  जो उसके इन्कारी हों तो वही घाटे वाले हैं (22)


*तफ़सीर*

     (22) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़माया यह आयत एहले सफ़ीना के बारे में उतरी जो जअफ़र बिन अबी तालिब के साथ रसूले पाक के दरबार में हाज़िर हुए थे. उनकी तादाद चालीस थी. बत्तीस हबशा वाले और आठ शाम वाले पादरी. उनमें बुहैपा राहिब (पादरी) भी थे. मतलब यह है कि वास्तव में तौरात शरीफ़ पर ईमान लाने वाले वही हैं जो इसके पढ़ने का हक़ अदा करते हैं और उसके मानी समझते और मानते हैं और उसमें हुज़ूर सैयदे कायनात मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और गुण देखकर हुज़ूर पर ईमान लाते हैं और जो हुज़ूर के इन्कारी होते हैं वो तौरात शरीफ़ पर ईमान नहीं रखते.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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