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Sunday 28 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ रब हमारे और कर हमें तेरे हुज़ूर गर्दन रखने वाला (11) और हमारी औलाद में से एक उम्मत (जन समूह) तेरी फ़रमाँबरदार (आज्ञाकारी) और हमें हमारी इबादत के क़ायदे बता और हम पर अपनी रहमत के साथ रूजू (तवज्जुह) फ़रमा (12) बेशक तू ही है बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान.


*तफ़सीर*

     (11) वो हज़रत अल्लाह तआला के आज्ञाकारी और मुख़लिस बन्दे थे, फिर भी यह दुआ इसलिये है कि ताअत और इख़लास में और ज़्यादा कमाल की तलब रखतें हैं. ताअत का ज़ौक़ सेर नहीं होता, सुब्हानल्लाह ,हर एक की फ़िक्र उसकी हिम्मत पर है.

     (12) हज़रत इब्राहीम और हज़रत इरुमाईल अलैहिस्सलाम मासूम हैं. आपकी तरफ़ तो यह तवाज़ो है और अल्लाह वालों के लिये तालीम है. यह मक़ाम दुआ की क़ुबूलियत की जगह है, और यहाँ दुआ और तौबह हज़रत इब्राहीम की सु्न्नत है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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