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Sunday 28 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने कि ऐ मेरे रब इस शहर को अमान वाला कर दे  और इसके रहने वालों को तरह तरह के फलो से रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाएं (9) फ़रमाया और जो क़ाफिर हुआ थोड़ा बरतने को उसे भी दूंगा फिर उसे दोज़ख़ के अज़ाब की तरफ़ मजबूर कर दूंगा और  वह बहुत बुरी जगह पलटने की की.


*तफ़सीर*

     (9) चूंकि इमारत के बारे में “ला यनालो अहदिज़ ज़ालिमीन” (यानी मेरा एहद ज़ालिमों को नहीं पहुंचता)इरशाद हो चुका था, इसलिये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने इस दुआ में ईमान वालों को ख़ास फ़रमाया और यही अदब की शान थी. अल्लाह ने करम किया. दुआ क़ुबूल हुई और इरशाद फ़रमाया कि रिज़्क़ सब को दिया जाएगा, ईमान वालो को भी, काफ़िर को भी. लेकिन काफ़िर का रिज़्क़ थोड़ा है, यानी सिर्फ दुनियावी ज़िनदगी में वह फ़ायदा उठा सकता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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