Pages

Wednesday 10 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-13, आयत, ①ⓞ⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

जब कोई आयत हम मन्सूख़ (निरस्त) फ़रमाएं या भुला दें (6)तो उससे बेहतर या उस जैसी ले आएंगे, क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है.


*तफ़सीर*

     (6) क़ुरआने करीम ने पिछली शरीअतों और पहली किताबों को मन्सूख़ यानी स्थगित फ़रमाया तो काफ़िरों को बड़ी घबराहट हुई और उन्होंने इसपर ताना किया. तब यह आयत उतरी और बताया गया कि जो स्थगित हुआ वह भी अल्लाह की तरफ़ से था और जिसने स्थगित किया (यानी क़ुरआन), वह भी अल्लाह की तरफ़ से है. और स्थगित करने वाली चीज़ कभी स्थगित होने वाली चीज़ से ज़्यादा आसान और नफ़ा देने वाली होती है. अल्लाह की क़ुदरत पर ईमान रखने वाले को इसमें शक करने की कोई जगह नहीं है. कायनात (सृष्टि ) में देखा जाता है कि अल्लाह तआला दिन से रात को, गर्मी से ठण्डी को,  जवानी को बचपन से, बीमारी को तंदुरूस्ती से, बहार से पतझड़ को स्थगित फ़रमाता है. यह तमाम बदलाव उसकी क़ुदरत के प्रमाण हैं. तो एक आयत और एक हुक्म के स्थगित होन में क्या आश्चर्य. स्थगन आदेश दरअस्ल पिछले हुक्म की मुद्दत तक के लिये था, और उस समय के लिये बिल्कुल मुनासिब था. काफ़िरों की नासमझी कि स्थगन आदेश पर ऐतिराज़ करते हैं और एहले किताब का ऐतिराज़ उनके अक़ीदों के लिहाज़ से भी ग़लत है. उन्हें हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शरीअत के आदेश का स्थगन मानना पड़ेगा. यह मानना ही पड़ेगा कि सनीचर के दिन दुनिया के काम उनसे पहले हराम नहीं थे. यह भी इक़रार करना होगा कि तौरात में हज़रते नूह की उम्मत के लिये तमाम चौपाए हलाल होना बयान किया गया और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर बहुत से चौपाए हराम कर दिये गए. इन बातों के होते हुए स्थगन आदेश का इन्कार किस तरह सम्भव है.

     जिस तरह एक आयत दूसरी आयत से स्थगित होती है. उसी तरह हदीसे मुतवातिर से भी होती है. स्थगन आदेश कभी सिर्फ़ हुक्म का, कभी तिलावत और हुक्म दोनों का. बेहक़ी ने अबू इमामा से रिवायत की कि एक अन्सारी सहाबी रात को तहज्जुद के लिये उठे और सूरए फ़ातिहा के बाद जो सूरत हमेशा पढ़ा करते थे उसे पढ़ना चाहा लेकिन वह बिल्कुल याद न आई और बिस्मिल्लाह के सिवा कुछ न पढ़ सके. सुबह को दूसरे सहाबा से इसका ज़िक्र किया. उन हज़रात ने फ़रमाया हमारा भी यही हाल है. वह सूरत हमें भी याद थी और अब हमारी याददाश्त में भी न रही. सबने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में वाक़िआ अर्ज़ किया. हुज़ूर ने फ़रमाया आज रात वह सूरत उठा ली गई. उसका हुक्म और तिलावत दोनों स्थगित हुए. जिन काग़जों पर वह लिखी हुई थी उन पर निशान तक बाक़ी न रहे.

●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●

मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●

*​DEEN-E-NABI ﷺ*

📲JOIN WHATSAPP

*(बहनों के लिये अलग ग्रुप)*

📱+91 95580 29197

📧facebook.com/deenenabi

📧Deen-e-nabi.blogspot.in

📧https://www.youtube.com/channel/UCuJJA1HaLBLMHS6Ia7GayiA

No comments:

Post a Comment