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Thursday 11 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-13, आयत, ①ⓞ⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

बहुत किताबियों ने चाहा (9) काश तुम्हें ईमान के बाद कुफ़्र की तरफ़ फेर दें अपने दिलों की जलन से (10) बाद इसके कि हक़ उनपर ख़ूब ज़ाहिर हो चुका है, तो तुम छोड़ो और दरगुज़र (क्षमा) करो यहां तक कि अल्लाह अपना हुक्म लाए बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (शक्तिमान) है.


*तफ़सीर*

     (9) उहद की जंग के बाद यहूदियों की जमाअत ने हज़रते हुज़ैफ़ा बिन यमान और अम्मार बिन यासिर रदियल्लाहो अन्हुमा से कहा कि अगर तुम हक़ पर होते तो तुम्हें हार न होती. तुम हमारे दीन की तरफ़ वापस आ जाओ. हज़रत अम्मार ने फ़रमाया तुम्हारे नज़दीक एहद का तोड़ना कैसा है ? उन्होंने कहा, निहायत बुरा. आपने फ़रमाया, मैं ने एहद किया है कि ज़िन्दगी के अन्तिम क्षण तक सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से न फिरूंगा और कुफ़्र न अपनाऊंगा और हज़रत हुज़ैफ़ा ने फ़रमाया, मैं राज़ी हुआ अल्लाह के रब होने, मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के रसूल होने, इस्लाम के दीन होने, क़ुरआन के ईमान होने, काबे के क़िबला होने और मूमिनीन के भाई होने से. फिर ये दोनों सहाबी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आपको वाक़ए की ख़बर दी. हुज़ूर ने फ़रमाया तुमने बेहतर किया और भलाई पाई. इसपर यह आयत उतरी.

     (10)  इस्लाम की सच्चाई जानने के बाद यहूदियों का मुसलमानों के काफ़िर और मुर्तद होने की तमन्ना करना और  यह चाहना कि वो ईमान से मेहरूम हो जाएं, हसद के कारण था, हसद बड़ी बुराई है. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया हसद से बचो वह नेकियों को इस तरह खाता है जैसे आग सूखी लक़डी को. हसद हराम है. अगर कोई शख़्स अपने माल व दौलत या असर और प्रभाव से गुमराही और बेदीनी फैलाता है, तो उसके फ़ितने से मेहफ़ूज रहने के लिये उसको हासिल नेअमतों के छिन जाने की तमन्ना हसद में दाख़िल नहीं और हराम भी नहीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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