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Saturday 13 October 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #277


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*बिलक़ीस सुलेमान عليه السلام के दरबार में*

     जैसे कि पहले गुज़र चुका है कि सुलेमान عليه السلام ने बिलक़ीस के आने से पहले उसके तख्त में बदलाव करा दिया था ताकि ये मालूम किया जा सके कि वो कितनी अक़्ल व समझ की मलका है। उसके आने पर पूछा क्या तुम्हारे तख्त ऐसा ही है? उसने जवाब दिया गोया ये वही है। 

     आप عليه السلام ने उससे पूछते हुए ये नही कहा क्या यही तेरा तख्त है? क्योंकि अगर आप ऐसा करते तो आज़माने का मक़सद फौत हो जाता। इससे तो उसे जवाब देने की तरफ इशारा मिल जाता। बिलक़ीस का जवाब भी निहायत अक़्लमंदी पर मौकुफ था। यानी उसने ये नही कहा कि ये वही है क्योंकि बिल्कुल वही नहीं था बल्कि उसमे बदलाव किया गया था, ओर उसने ये भी नही कहा "ये वो तो नही" क्योंकि दरहक़ीक़त तख्त तो वही था इसकी नफ़ी करनी भी दुरुस्त नही थी, इसलिए उसने बड़ी अक़्लमंदी से जवाब दिया गोया की ये वही है। यानी है तो वही लेकिन इसमें कुछ तब्दीलियां कर दी गई है।

     उसने ये भी कहा कि हमें पहले ही आपकी नबुव्वत, इल्म, मोजिज़ात और अल्लाह के मुतअल्लिक़ इल्म था। और दिल से तो पहले ही तस्लीम कर चुकी थी सिर्फ आपके पास आकर दिल को ज़्यादा तसल्ली देना मक़सूद था।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 233

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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