*इश्को महब्बत* #3
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
1) एक रोज़ हज़रते उमर फारूक रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने रसूलुल्लाह ﷺ से अर्ज़ किया कि बेशक आप सिवाए मेरी जान के जो मेरे दो पहलुओं में है, मेरे नज़दीक हर शै से ज़ियादा महबूब हैं।
आं हज़रत ﷺ ने फ़रमाया: " तुम में से कोई हरगिज़ मोमिन (कामिल) नही बन सकता जब तक मैं उस के नज़दीक उस की जान से ज़ियादा महबूब न हो जाऊं।"
येह सुन कर हज़रते उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने जवाब में अर्ज़ किया कि क़सम है उस ज़ात की जिस ने आप ﷺ पर क़िताब नाज़िल फ़रमाई। बेशक आप ﷺ मेरे नज़दीक मेरी जान से जो मेरे दोनों पहलुओं के दरमियान है, ज़ियादा महबूब है।
इस पर हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: " اَلاٰن يا عمر या'नी हां अब ! ऐ उमर!
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 76
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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