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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
गुरबत व मिस्कीनी तो वोह आज़माइश है जिस में मुब्तला मुसल्मान अगर सब्र का दामन थामे हुए गौरो फ़िक्र करे तो उसे पता चलेगा कि अहादीसे मुबारका में गुरबा व मसाकीन के कितने फ़ज़ाइल बयान किये गए हैं , इस्लाम में ऐसे लोग हकीर नहीं बल्कि लाइके महब्बत हैं, जैसा कि हज़रते सय्यदुना अबू सईद खुदरी رضی اﷲ تعالٰی عنه फ़रमाते हैं: मसाकीन से महब्बत करो, क्यूं कि मैं ने रसूले खुदा, महबूबे अम्बिया ﷺ को दुआ में येह अल्फ़ाज़ शामिल फ़रमाते सुना : "ऐ अल्लाह! मुझे मिस्कीनी की हालत में हयात और मिस्कीनी की हालत में ही विसाल अता फरमा और गुरौहे मसाकीन में मेरा हश्र फ़रमा।"
*शर-ई मस्अला* : याद रखिये कि हुजूर ﷺ बारगाहे इलाही में इज्ज़ के तौर पर अपने आप को जुम्रए मसाकीन में शामिल फ़रमाएं तो येह आप ﷺ को रवा (यानी जाइज़) है लेकिन हमारे लिये आप ﷺ को "फकीर व मिस्कीन" कहना ना-रवा (यानी जाइज़ नहीं) बल्कि हराम है। (फतावा अहले सुन्नत, हिस्सा : 8, स.118)
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼 ग़रीब फाएदे में है पेज 15*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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