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Friday 18 January 2019

ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।

*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।

*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।

*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*

     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।

     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।

     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।

     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।

*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*

     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।

     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।

     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।

     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।

     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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