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Wednesday 8 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #144
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨⑥_*
     और हज व उमरा अल्लाह के लिये पूरा करो(19)
फिर अगर तुम रोके जाओ (20)
तो क़ुरबानी भेजो जो मयस्सर (उपलब्ध) आए (21)
और अपने सर न मुडाओ जब तक क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुंच जाए (22)
फिर जो तुममें बीमार हो उसके सर में कुछ तकलीफ़ है  (23)
तो बदला दे रोज़े (24) या ख़ैरात (25) या क़ुरबानी,
फिर जब तुम इत्मीनान से हो तो जो हज से उमरा मिलाने का फ़ायदा उठाए (26)
उस पर क़ुरबानी है जैसी मयस्सर आए (27)
फिर जिसकी ताक़त न हो तीन रोज़े हज के दिनों में रखे  (28)
और सात जब अपने घर पलट कर जाओ, ये पूरे दस हुए यह हुक्म उसके लिये है जो मक्के का रहने वाला न हो, (29)
और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह का अज़ाब सख़्त है.
*तफ़सीर*
     (19) और इन दोनों को इनके फ़रायज़ और शर्तों के साथ ख़ास अल्लाह के लिये बे सुस्ती और बिला नुक़सान पूरा करो. हज नाम है इहराम बाँधकर 9वीं ज़िलहज को अरफ़ात में ठहरने और काबे के तवाफ़ का. इसके लिये ख़ास वक़्त मुक़र्रर है, जिसमें ये काम किये जाएं तो हज है.
     हज सन नौ हिजरी में फ़र्ज़ हुआ. इसकी अनिवार्यता निश्चित है.
     हज के फ़र्ज़ ये हैं : (1) इहराम (2) नौ ज़िल्हज को अरफ़ात के मैदान में ठहरना (3) तवाफ़े ज़ियारत.
     हज के वाजिबात ये हैं : (1) मुज़्दलिफ़ा में ठहरना, (2) सफ़ा मर्वा के बीच सई, (3) शैतानों को कंकरियाँ मारना. (4) बाहर से आने वाले हाजी के लिये काबे का तवाफ़े रूख़सत और (5) सर मुंडाना या बाल हल्के कराना.
     उमरा के रूक्न तवाफ़ और सई हैं और इसकी शर्त इहराम और सर मुंडाना है. हज और उतरा के चार तरीक़े हैं. (1) इफ़राद बिलहज : वह यह है कि हज के महीनों में या उनसे पहले मीक़ात से या उससे पहले हज का इहराम बाँध ले और दिलसे उसकी नियत करे चाहे ज़बान से. लब्बैक पढ़ते वक़्त चाहे उसका नाम ले या न ले. (2) इफ़राद बिल उमरा : वह यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीनों में या उनसे पहले उमरे का इहराम बाँधे और दिल से उसका इरादा करे चाहे तलबियह यानी लब्बैक पढ़ते वक़्त ज़बान से उसका ज़िक्र करे या न करे और इसके लिये हज के महीनों में या उससे पहले तवाफ़ करे चाहे उस साल में हज करे न करे मगर हज और उमरे के बीच सही अरकान अदा करे इस तरह कि अपने बाल बच्चों की तरफ़ हलाल होकर वापस हो. (3) क़िरान : यह है कि हज और उमरा दोनो को एक इहराम में जमा करे. वह इहराम मीक़ात से बाँधा हो या उससे पहले, हज के महीनों में या उनसे पहले. शुरू से हज और उमरा दोनों की नियत हो चाहे तलबियह या लब्बैक कहते वक़्त ज़बान से दोनों का ज़िक्र करे या न करे. पहले उमरे के अरकान अदा करे फिर हज के. (4) तमत्तो : यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीने में या उससे पहले उमरे का इहराम बाँधे और हज के माह में उतरा करे या अकसर तवाफ़ उसके हज के माह में हो और हलाल होकर हज के लिये इहराम बाँधे और उसी साल हज करे और हज और उमरा के बीच अपनी बीवी के साथ सोहबत न करे. इस आयत से उलमा ने क़िरान साबित किया है.
     (20) हज या उमरे से बाद शुरू करने और घर से निकलने और इहराम पहन लेने के, यानी तुम्हें कोई रूकावट हज या उमरे की अदायगी में पेश आए चाहे वह दुश्मन का ख़ौफ़ हो या बीमारी वग़ैरह, ऐसी हालत में तुम इहराम से बाहर आजाओ.
     (21) ऊट या गाय बकरी, और यह क़ुरबानी भेजना वाजिब है.
     (22) यानी हरम में जहाँ उसके ज़िब्ह का हुक्म है. यह क़ुरबानी हरम के बाहर नहीं हो सकती.
     (23) जिससे वह सर मुंडाने के लिये मजबूर हो और सर मुंडाले.
     (24) तीन दिन के. (25) छ मिस्कीनों का खाना, हर मिस्कीन के लिये पौने दो सेर गेहूँ. (26) यानी तमत्तो करे.
     (27) यह क़ुरबानी तमत्तो की है, हज के शुक्र में वाजिब हुई, चाहे तमत्तो करने वाला फ़कीर हो. ईदुज़ जु़हा की क़ुरबानी नहीं, जो फ़क़ीर और मुसाफ़िर पर वाजिब नहीं होती.
     (28) यानी पहली शव्वाल से 9वीं ज़िल्हज तक इहराम बांधने के बाद इस दरमियान में जब चाहे रखले, चाहे एक साथ या अलग अलग करके. बेहतर यह है कि सात, आठ, नौ ज़िल्हज को रखे.
     (29) मक्का के निवासी के लिये न तमत्तो है न क़िरान. और मीक़ात की सीमाओं के अन्दर रहने वाले, मक्का के निवासियों में दाख़िल हैं.
     मीक़ात पाँच है : जुल जलीफ़ा, ज़ाते इर्क़, जहफ़ा, क़रन, यलमलम. जु़ल हलीफ़ा मदीना निवासियों के लिये, जहफ़ा शाम के लोगों के लिये, क़रन नज्द के निवासियों के लिये, यलमलम यमन वालों के लिये.  (हिन्दुस्तान चूंकि यमन की तरफ़ से पड़ता है इसलिये हमारी मीक़ात भी यलमलम ही है)
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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