*4-निय्यत की अहमिय्यत*
हज़रते उमरे फारूक رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : आमाल का दारो मदार निय्यतो पर है।
*सहीह बुखारी*
इस हदिष से मालुम हुआ की आमाल का षवाब निय्यत पर ही है, बगैर निय्यत किसी अमल पर षवाब का हक़ नही। आमाल अमल की जमा है और इस का इत्लाक़ आज़ा, ज़बान और दिल तीनो के अफआल पर होता है और यहाँ आमाल से मुराद आमाले सालिहा (नेक आमाल) और मुबाह (जाइज़) अफआल है। और निय्यत लुग्वी तौर पर दिल के पुख्ता इरादे को कहते है और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।
इबादत की दो किस्मे है : (1) मक़्सूदा (2) गैर मक़्सूदा इसकी तफ़सील अगली पोस्ट में أن شاء الله
*40 फरमाने मुस्तफा, 10*
हज़रते उमरे फारूक رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : आमाल का दारो मदार निय्यतो पर है।
*सहीह बुखारी*
इस हदिष से मालुम हुआ की आमाल का षवाब निय्यत पर ही है, बगैर निय्यत किसी अमल पर षवाब का हक़ नही। आमाल अमल की जमा है और इस का इत्लाक़ आज़ा, ज़बान और दिल तीनो के अफआल पर होता है और यहाँ आमाल से मुराद आमाले सालिहा (नेक आमाल) और मुबाह (जाइज़) अफआल है। और निय्यत लुग्वी तौर पर दिल के पुख्ता इरादे को कहते है और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।
इबादत की दो किस्मे है : (1) मक़्सूदा (2) गैर मक़्सूदा इसकी तफ़सील अगली पोस्ट में أن شاء الله
*40 फरमाने मुस्तफा, 10*
No comments:
Post a Comment