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Tuesday 6 March 2018

*मजलिसे ज़िक्र में शिरकत की फ़ज़ीलत*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: फ़रिश्ते (बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त में) अर्ज़ करते है: ऐ रब इन में फुला बन्दा बड़ा गुनाहगार था, वो उन (ज़िक्र करने वालों) के क़रीब से गुज़रा तो उन के साथ बैठ गया। आप ﷺ ने फरमाया कि अल्लाह फ़रमाता है: में ने उसे भी बख्श दिया। वो (ज़िक्र करने वाली) ऐसी क़ौम है कि उनके साथ बैठने वाला भी बद नसीब नहीं होता।
*✍مسلم*
     मीठे और प्यारे इस्लामी भइयों! देखा आपने कि नेकों की सोहबत कितनी फायदा मन्द है कि अगर कोई गुनाहगार भी उनके पास आ कर बैठे जाए तो वो भी रहमते इलाही से महरूम नहीं रहता। जब लम्हा भर के लिये अच्छी सोहबत इख़्तियार करने वाला भी महरूम नहीं रहता तो भला वो खुश नसीब जो सुन्नतों भरे माहोल से हमेशा के लिये वाबस्ता हो जाए, रहमते इलाह से किस तरह महरूम रह सकता है!
     इसी तरह हज़रते अबू रज़ीन رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने उनसे फ़रमाया: क्या में तुम्हारी उस चीज़ की अस्ल पर रहनुमाई न करूँ जिस से तुम दुन्या व आख़िरत की भलाई पा लो, तुम ज़िक्र वालों की मजलिस इख़्तियार करो और जब तुम तन्हाई में हो तो जहाँ तक कर सको अपनी ज़बान अल्लाह के ज़िक्र में हिलाते रहो और अल्लाह की राह में महब्बत करो और अल्लाह की राह में अदावत करो।
*✍شعب الايمان*
     हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान رحمة الله عليه इस हदीस के तहत फ़रमाते है: इससे मुराद उलमाए दीन, औलियाए कामिलिन, सालिहीन व वासिलिन की मजलिसें है क्योंकि ये मजलिसें मदरसे हों या दरसे क़ुरआनो हदीस, या हज़राते सुफियाए किराम की ज़िक्र की महफिलें, ये फरमान बहुत जामेअ है, जिस मिजलिस में अल्लाह खौफ, हुज़ूर ﷺ का इश्क़ और इताअते रसूल का शौक़ पैदा हो वो मजलिस अकसीर है।
*✍मीरआतुल मनाजिह्* 6/603

*✍अच्छे माहोल की बरकतें* 9
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*​अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...​*
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