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Saturday 12 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-26, आयत, ②①③*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

लोग एक दीन पर थे (6) फिर अल्लाह ने नबी भेजे ख़ुशख़बरी देते(7) और डर सुनाते (8) और उनके साथ सच्ची किताब उतरी  (9) कि वह लोगों में उनके मतभेदों का फैसला कर दे  और किताब में मतभेद उन्हीं ने डाला जिन को दी गई थी (10) बाद इसके कि उनके पास रौशन हुक्म आ चुके  (11) आपस की सरकशी से तो अल्लाह ने ईमान वालों को वह सच्ची बात सुझा दी जिसमें झगड़ रहे थे अपने हुक्म से और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए.


*तफ़सीर*

(6) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से हज़रत नूह के एहद तक सब लोग एक दीन और एक शरीअत पर थे. फिर उनमें मतभेद हुआ तो अल्लाह तआला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा. ये रसूल बनाकर भेजे जाने वालों में पहले हैं (ख़ाज़िन).

(7) ईमान वालों और फ़रमाँबरदारों को सवाब की. (मदारिक और ख़ाज़िन)

(8) काफ़िरों और नाफ़रमानों को अज़ाब का. (ख़ाज़िन)

(9) जैसा कि हज़रत आदम व शीस व इद्रीस पर सहीफ़े और हज़रत मूसा पर तौरात, हज़रत दाऊद पर ज़ुबूर, हज़रत ईसा पर इन्जील और आख़िरी नबी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर क़ुरआन.

(10) यत मतभेद धर्मग्रन्थों में काँटछाँट और रद्दोबदल और ईमान व कुफ़्र के साथ था, जैसा कि यहूदियों और ईसाईयों से हुआ. (ख़ाज़िन)

(11) यानी ये मतभेद नादानी से न था बल्कि …….

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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