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Saturday 15 September 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-9, आयत, ⑦⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तो ख़राबी है उनके लिये जो किताब अपने हाथ से लिखें फिर कह दें ये ख़ुदा के पास से है कि इसके बदले थोड़े दाम हासिल करें (9) तो ख़राबी है उनके लिये उनके हाथों के लिखे से और ख़राबी उनके लिये उस कमाई से.


*तफ़सीर*

     (9) जब सैयदे अंबिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मदीनए तैय्यिबह तशरीफ़ लाए तो यहूदियों के विद्वानों और सरदारों को यह डर हुआ कि उनकी रोज़ी जाती रहेगी और सरदारी मिट जाएगी क्योंकि तौरात में हुज़ूर का हुलिया (नखशिख) और विशेषताएं लिखी है. जब लोग हुज़ूर को इसके अनुसार पाएंगे, फ़ौरन ईमान ले आएंगे और अपने विद्वानों और सरदारों को छोड़ देंगे. इस डर से उन्होंने तौरात के शब्दों को बदल डाला और हुज़ूर का हुलिया कुछ का कुछ कर दिया. मिसाल के तौर पर तौरात में आपकी ये विशेषताएं लिखी थीं कि आप बहुत ख़ूबसूरत हैं, सुंदर बाल वाले, सुंदर आँख़े सुर्मा लगी जैसी, क़द औसत (मध्यम) दर्जे का है. इसको मिटाकर उन्होंने यह बनाया कि हुज़ूर का क़द लम्बा, आंख़े कंजी, बाल उलझे हुए हैं. यही आम लोगों को सुनाते, यही अल्लाह की किताब का लिखा बताते और समझते कि लोग हुज़ूर को इस हुलिये से अलग पाएंगे तो आप पर ईमान न लाएंगे, हमारे ही असर में रहेंगे और हमारी कमाई में कोई फ़र्क़ नहीं आएगा.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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