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Sunday 23 September 2018

हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     क्या आप जानते नही ! दुन्या में जब एक बाप का बेटा नाफ़रमान होता है तो बाप के लिए वो कुछ काम का नही रहता। बाप उससे नाराज हो के कहता है अगर तुझे ऐसे ही काम करने है तो मुझे अपना बाप न कहना, में तुझे अपना बेटा समझने तैयार नहीं, तूने मुआशरे में मेरा नाक कटा दिया, अब हमें घर से बाहर निकलते वक्त 100 बार सोचना पड़ता है, की अभी कोई कुछ कह न दे।

     जबकि बाप के अख़लाक़ अच्छे है, सिर्फ बेटा निकम्मा नकारा है। फिर भी बेटे की निस्बत और सम्बंध बाप के साथ है उस को लेके बाप को ये सब सुनना पड़ता है, आखिरकार वो बेटे से रिश्ता तोड़ देता है।

     जब एक बाप अपने बेटे के बुरे अख़लाक़ की वजह से अपने बेटे को बेटा कहने को तैयार नही है, तो क्या गौषे पाक رضي الله عنه बेनामाज़ी की निस्बत अपनी तरफ लगाना पंसद फरमाएंगे? क्या गरीब नवाज رضي الله عنه शराबी जुगारी को अपनी निस्बत में रखना पसंद करेंगे? बुजुर्गो और वली शैतान की निस्बत अपनी और कैसे मनसूब कर सकते है?

     हम अपनी ज़बान से चाहे कितने भी नारे लागले इससे कुछ फायदा हासिल न होगा। जम कामयाब तब कहलाएंगे जब ये बुजुर्ग हमे अपना गुलाम बना ले, और ये अज़ीम सौगात हमे तब ही हासिल होंगी जब हम उनके बताए रिश्ते पे चल पड़ेंगे।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 18

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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