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Friday 21 September 2018

हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अगर हमारे नारे सच्चे होते तो मस्जिदे खाली न दिखाई देती, शादियो में नाच, गाना देखने को न मिलता, हमारी मां बहने बिना पर्दे के बाजारों में न गुमती, हमारे घरों में गाने बजे ओर गन्दी फिल्मे न दिखाई देती, हमारी औरते गेर मरहम मर्दो के सामने यूँ अपना दिखावा न करती।

     बल्कि हमारे नारे सच्चे होते तो आज मस्जिदे आबाद होती, हमारे घरों में गानों की जगह तिलावते क़ुरआन सुनाई देता, शादिया सुन्नत के मुताबिक़ होती, हमारी औरते बा पर्दा रहती।

     लेकिन कहा हम और कहा गौषे पाक رضي الله عنه! कहा हम और कहा गरीब नवाज رضي الله عنه! हमारे जैसो से उनका क्या रिश्ता? अमल को छोड़ के शब्दों को फ़ज़ीलत देने वालो के लिए तो ये कहावत ही सही है...ये मुंह और मसुरकी दाल!


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 16

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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