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Sunday 23 September 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑧⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब उनके पास अल्लाह की किताब (क़ुरआन) आई जो उनके साथ वाली किताब (तौरात) की तस्दीक़ (पुष्टि) फ़रमाती है (9) और इससे पहले वो इसी नबी के वसीले (ज़रिये) से काफ़िरों पर फ़त्ह मांगते थे (10) तो जब तशरीफ़ लाया उनके पास वह जाना पहचाना, उस से इन्कार कर बैठे (11) तो अल्लाह की लानत इन्कार करने वालों पर.


*तफ़सीर*

     (9) सैयदे अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और हुज़ूर के औसाफ़ (ख़ूबियों) के बयान में. (ख़ाज़िन व तफ़सीरे कबीर)

     (10) सैयदे अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम केनबी बनाए जाने और क़ुरआन उतरने से पहले यहूदी अपनी हाजतों के लिये हुज़ूर के नामे पाक के वसीले से दुआ करते और कामयाब होते थे और इस तरह दुआ किया करते थे – “अल्लाहुम्मफ्तह अलैना वन्सुरना बिन्नबीयिल उम्मीय्ये” यानी ऐ अल्लाह, हमें नबिय्ये उम्मी के सदक़े में फ़त्ह और कामयाबी अता फ़रमा. इससे मालूम हुआ कि अल्लाह के दरबार में जो क़रीब और प्रिय होते हैं उनके वसीले से दुआ कुबूल होती है. यह भी मालूम हुआ कि हुज़ूर से पहले जगत में हुज़ूर के तशरीफ़ लाने की बात मशहूर थी, उस वक़्त भी हुज़ूर के वसीले से लोगो की ज़रूरत पूरी होती थी.

     (11) यह इन्कार दुश्मनी, हसद और हुकूमत की महब्बत की वजह से था.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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