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Tuesday 18 September 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-9, आयत, ⑧②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये वो जन्नत वाले हैं, उन्हें हमेशा उसमें रहना.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-10, आयत, ⑧③*

     और जब हमने बनी इस्राईल से एहद लिया कि अल्लाह के सिवा किसी को न पूजो और माँ बाप के साथ भलाई करो (1) और रिश्तेदारों और यतीमों (अनाथों) और मिस्कीनों (दरिद्रों) से और लोगों से अच्छी बात कहो (2) और नमाज़ क़ायम रखों और ज़कात दो, फिर तुम फिर गए (3) मगर तुम में के थोड़े (4) और तुम मुंह फेरने वाले हो(5)


*तफ़सीर*

     (1) अल्लाह तआला ने अपनी इबादत का हुक्म फ़रमाने के बाद माँ बाप के साथ भलाई करने का आदेश दिया. इससे मालूम होता है कि माँ बाप की ख़िदमत बहुत ज़रूरी है. माँ बाप के साथ भलाई के ये मानी हैं कि ऐसी कोई बात न कहे और कोई ऐसा काम न करे जिससे उन्हें तकलीफ़ पहुंचे और अपने शरीर और माल से उनकी ख़िदमत में कोई कसर न उठा रखे. जब उन्हें ज़रूरत हो उनके पास हाज़िर रहे. अगर माँ बाप अपनी ख़िदमत के लिये नफ़्ल (अतिरिक्त) इबादत छोड़ने का हुक्म दें तो छोड़ दे, उनकी ख़िदमत नफ़्ल से बढ़कर है. जो काम वाजिब (अनिवार्य) है वो माँ बाप के हुक्म से छोड़े नहीं जा सकते. माँ बाप के साथ एहसान के तरीक़े जो हदीसों से साबित हैं ये हैं कि दिल की गहराइयो से उनसे महब्बत रखे, बोल चाल, उठने बैठने में अदब का ख़याल रखे, उनकी शान में आदर के शब्द कहे, उनको राज़ी करने की कोशिश करता रहे, अपने अच्छे माल को उनसे न बचाए. उनके मरने के बाद उनकी वसीयतों को पूरा करे, उनकी आत्मा की शांति के लिये दानपुन करे, क़ुरआन का पाठ करे, अल्लाह तआला से उनके गुनाहों की माफ़ी चाहे, हफ़्ते में कम से कम एक दिन उनकी क़ब्र पर जाए. (फ़त्हुल अज़ीज़) माँ बाप के साथ भलाई करने में यह भी दाख़िल है कि अगर वो गुनाहों के आदी हों या किसी बदमज़हबी में गिरफ़्तार हों तो उनकों नर्मी के साथ अच्छे रास्ते पर लाने की कोशिश करता रहे. (ख़ाज़िन)

     (2) अच्छी बात से मुराद नेकियों की रूचि दिलाना और बुराईयों से रोकना है. हज़रत इब्ने अब्बास ने फ़रमाया कि मानी ये है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शान में सच बात कहो. अगर कोई पूछे तो हुज़ूर के कमालात और विशेषताएं सच्चाई के साथ बयान कर दो और आपके गुण मत छुपाओ.

     (3) एहद के बाद

     (4) जो ईमान ले आए, हज़रत अबदुल्लाह बिन सलाम और उनके साथियों की तरह, तो उन्होंने एहद पूरा किया.

     (5) और तुम्हारी क़ौम की आदत ही विरोध करना और एहद से फिर जाना है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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