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Sunday 12 March 2017

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #08/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अदा, क़ज़ा और वाजीबुल इआदा की तारीफ़_*
     जिस चीज़ का बन्दों को हुक्म है उसे वक़्त में बजा लाने को अदा कहते है और वक़्त खत्म होने के बाद अमल में लाना क़ज़ा है और अगर उस हुक्म के बाज लाने में कोई खराबी पैदा हो जाए तो उस खराबी को दूर करने के लिये वो अमल दोबारा बजा लाना इआदा कहलाता है।
     वक़्त के अंदर अंदर अगर तहरिमा बांध ली तो नमाज़ क़ज़ा न हुई बल्कि अदा है।
*✍🏽दुर्रे मुख़्तार 2/627*
     नमाज़े फ़ज्र, जुमुआ और इदैन में वक़्त के अंदर सलाम फिरना लाज़िम है वरना नमाज़ न होगी
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*
     बिला उज़्रे शरई नमाज़ क़ज़ा कर देना सख्त गुनाह है, इस पर फ़र्ज़ है कि उसकी क़ज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा भी करे, तौबा या हज्जे मक़बूल से इन्शा अल्लाह ताखीर का गुनाह मुआफ़ हो जाएगा
*✍🏽दुर्रे मुख्तार 2/626*
     तौबा उसी वक़्त सहीह है जब कि क़ज़ा पढ़ ले उसको अदा किये बगैर तौबा किये जाना तौबा नही कि, जो नमाज़ इस के ज़िम्मे थी उसको पढ़ना तो अब भी बाक़ी है और जब गुनाह से बाज़ न आया तो तौबा कहा हुई ?
*✍🏽रद्दल मोहतार 2/627*

     हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : गुनाह पर क़ाइम रह कर तौबा करने वाला उस की मिस्ल है जो अपने रब से ठठा यानी मज़ाक करता है।
*✍🏽शोएबुल ईमान 5/436*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 246*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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