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Tuesday, 14 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #170
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②⑤_*
     अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता उन क़स्मों में जो बेईरादा ज़बान से निकल जाएं, हाँ उसपर पकड़ फ़रमाता है जो काम तुम्हारे दिलों ने किये और अल्लाह बख़्शने वाला हिल्म (सहिष्णुता) वाला है.

*तफ़सीर*
     क़सम तीन तरह की होती है : (1) लग्व (2) ग़मूस (3) मुनअक़िदा. लग्व यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर अपने ख़याल में सही जानकर क़सम खाए और अस्ल में वह उसके विपरीत हो, यह माफ़ है, और इस पर कफ़्फ़ारा नहीं. ग़मूस यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर जान बूझकर झूठी क़सम खाए, इसमें गुनाहगार होगा. मुनअक़िदा यह है कि किसी आने वाली बात पर इरादा करके क़सम खाए. क़सम को अगर तोड़े तो गुनाहगार भी है और कफ़्फ़ारा भी लाज़िम.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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