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Thursday 2 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #160
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②①⑥_*
     तुमपर फ़र्ज़ हुआ अल्लाह की राह में लड़ना और वह तुम्हें नागवार है (18) और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें बुरी लगे और वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और क़रीब है कि कोई बात तुम्हें पसन्द आए  और वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो.  और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते (19)

*तफ़सीर*
     (18) जिहाद फ़र्ज़ है, जब इसकी शर्ते पाई जाएं. अगर काफ़िर मुसलमानों के मुल्क पर चढ़ाई करें तो जिहाद अत्यन्त अनिवार्य हो जाता है. वरना फ़र्जे़ किफ़ाया यानी एक के करने से सब का फ़र्ज़ अदा हो गया.
     (19) कि तुम्हारे हक़ में क्या बेहतर है. तो तुम पर लाज़िम है, अल्लाह के हुक्म का पालन करो और उसी को बेहतर समझो, चाहे वह तुम्हारी अन्तरआत्मा पर भारी हो.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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