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Thursday 23 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #178
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③④_*
     और  तुम में जो मरें और बीबियां छोड़ें वो चार महीने दस दिन अपने आप को रोके रहें तो जब उनकी मुद्दत (अवधि) पूरी हो जाए तो ऐ वालियों  तुम पर मुआख़ज़ा(पकड़) नहीं उस काम में जो औरत अपने मामले में शरीअत के अनुसार करें और अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है.

*तफ़सीर*
     गर्भवती की इद्दत तो गर्भ के अन्त तक यानी बच्चा पैदा हो जाने तक है, जैसा कि सूरए तलाक़ में ज़िक्र है. यहाँ बिना गर्भ वाली औरत का बयान है जिसका शौहर मर जाए, उसकी इद्दत चार माह दस रोज़ है. इस मुद्दत में न वह निकाह करे न अपना घर छोडे़, न बिना ज़रूरत तेल लगाए, न ख़ुश्बू लगाए, न मेहंदी लगाए, न सिंगार करे, न रंगीन और रेशमी कपड़े पहने, न नए निकाह की बात चीत खुलकर करे. और जो तलाक़े बयान की इद्दत में हो, उसका भी यही हुक्म है. अल्बत्ता जो औरत तलाक़े रजई की इद्दत में हो, उसको सजना सँवरना और सिंगार करना मुस्तहब है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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