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Sunday 11 June 2017

*बरकाते ज़कात*  #18

*_ज़कात की अदाएगी की हिकमते_* #02
     शरीअत ने ज़कात फ़र्ज़ करके कोई अनहोनी चीज़ नहीं की बल्कि अगर हम अपने अतराफ़ में गौरो फ़िक़्र करे तो ज़कात की हिक्मत हर जगह मौजूद है। जेसे कि फलो का गुदा इंसान के लिये है मगर छिलका जानवरो का हक़ है। गन्दुम में फल (यानी बिज) हमारा हिस्सा मगर भूसा जानवरो का। हमारे जिस्म में बाल और नाख़ून वग़ैरा का हद्दे शरई से बढ़ने की सूरत में अलाहदा करना ज़रूरी है की ये सब जिस्म की ज़कात यानी इज़ाफ़ी चीज़ मेल है। बिमारी तंदुरस्ती की ज़कात, मुसीबत राहत की ज़कात, नमाज़े दुन्यवि कारोबार की गोया की ज़कात है।

     अगर हर चीज़ वो शख्स जिस पर ज़कात फ़र्ज़ है, ज़कात की अदाएगी का अपने ऊपर लाज़िम करले तो मुसलमान कभी दुसरो के मोहताज न होंगे। मुसलमानो की ज़रूरते मुसलमानो से ही पूरी हो जाएगी और किसी को भी मांगने की भी हाजत न होगी।

     बहर हाल दौलत को तिजोरियों में बंद करने के बजाए ज़कात व सदक़ात की सूरत में राहे खुदा में खर्च करे, वरना यक़ीन कीजिये कि ज़कात अदा न करना, आख़िरत के दर्दनाक अज़ाब और दुन्या में मआशी बद हाली का सबब बन सकता है।
*✍🏼बरकाते ज़कात, स.20*

*तमाम मोमिनो के इसले षवाब के लिये*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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