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Monday 6 November 2017

*83 आसान नेकियां* #68
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*सब्र करना*_
     हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जब अल्लाह मख्लूक़ को जमा फ़रमाएगा तो एक मुनादी निदा करेगा : अहले फ़ज़्ल कहाँ है ? तो कुछ लोग खड़े होंगे जो तादाद में निहायत क़लील होंगे। जब ये जल्दी से जन्नत की तरफ बढ़ेंगे तो फ़रिश्ते इन से मिलेंगे और कहेंगे : हम देख रहे है कि तुम तेज़ी से जन्नत की तरफ जा रहे हो तुम कौन ? तो वो जवाब देंगे कि हम अहले फ़ज़्ल है। फ़रिश्ते पूछेंगे : तुम्हारा फ़ज़्ल क्या है ? वो जवाब देंगे : जब हम पर ज़ुल्म किया जाता था तो हम सब्र करते थे और जब हम से बुराई का बरताव किया जाता था तो उसे बर्दाश्त करते थे। फिर उन से कहा जाएगा कि जन्नत में दाखिल हो जाओ और अच्छे अमल वालों का षवाब कितना अच्छा है।
*✍🏼الترغيب والترهيب*
*_सब्र किसे कहते है ?_*
     सब्र का मतलब ये है कि परेशानी के मौके पर ज़बान तो ज़बान ! मुंह बना कर या दीगर आज़ा के इशारे से भी बे चैनी और बेक़रारी का इज़हार न किया जाए।
     चुनान्चे हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान عليه رحما फ़रमाते है : सब्र के माना है "रोकना"। जब की शरीअत में कामयाबी की उम्मीद से मुसीबत पर बेक़रार न होने को सब्र कहते है। सब्र की तीन किस्मे है (1) मुसीबत में सब्र करना (2) इबादत और इताअत की मशक़्क़तों पर सब्र करना और इन पर क़ाइम रहना (3) नफ़्स को गुनाह की तरफ माइल होने से रोकना।
     इस को यूँ समझो कि मुसीबत में दिल चाहता है कि बेक़रारी और बेचैनी का इज़हार करे अब दिल को क़ाबू में रखना और राज़ी ब रिज़ा रहना पहली किस्म का सब्र है। सर्दी के मौसम में ठन्डे पानी से वुज़ू करने की हिम्मत नहीं पड़ती, इसी तरह ज़कात निकालने को जी नहीं चाहता अब दिल पर जब्र कर के इन कामों को कर गुज़रना दूसरी किस्म का सब्र है। गाने बजाने की तरफ दिल माइल है, हम देखते है कि सूदखोर बड़े मज़े से पैसे कमा रहे है हमारा दिल भी चाहता है कि ये हरकत करें अब दिल को रोकना और उधर न जाने देना तीसरी किस्म का सब्र है।
*✍🏼तफ़सीरे नईमी, 1/337*
*✍🏼आसान नेकियां* 160

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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