*83 आसान नेकियां* #71
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_शुक्र करना_*
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : खाना खा कर शुक्र करने वाला उस रोज़ेदार की तरह है जिस ने खाने से सब्र किया हो।
*✍🏼ترمزى*
यक़ीनन शुक्र आला दर्जे की इबादत, अज़ीम सआदत और इस में नेअमतों की हिफाज़त है। शुक्र का एक दर्जा ये है कि बन्दा अल्लाह की अता करदा नेअमतों में गौर करे, उस की अता पर राज़ी हो और उस की किसी नेअमत की नाशुक्री न करे जबकी शुक्र का दुसरा दर्जा ये है कि ज़बान से भी इन नेअमतों का शुक्र करे।
जब भी हमें छोटी बड़ी नेअमत मिले अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिये मषलन नमाज़ वक़्त पर बा जमाअत अदा करने की सआदत मिली तो शुक्र अदा करें, किसी गुनाह से बचने में कामयाब हो गए तो शुक्र अदा करें, शदीद भूक प्यास में खाने को मिल गया तो शुक्र अदा करें, बिमारी से सिह्हत याबी मिली तो शुक्र अदा करें अल गर्ज़ हर वो जाइज़ बात जिस से ख़ुशी या आराम मिले उस पर शुक्र अदा करते रहने की आदत डालनी चाहिये।
शुक्र के लिये कोई अलफ़ाज़ ख़ास नहीं الحمد لله عز وجل कह लीजिये या अपनी मादरी ज़बान में शुक्र अदा कर लीजिये दोनों तरह दुरुस्त है। अगर ज़बान से मौक़ा नहीं मिला तो दिल ही दिल में शुक्र अदा कर लेना चाहिये।
हज़रते अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन मुन्कदिर क़रशि عليه رحما से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ये दुआ किया करते थे :
اٙللّٰهُمّٙ اٙعِنِّىْ عٙلٰى ذِكْرِكٙ وٙشُكْرِكٙ وٙحُسْنِ عِبٙادٙتِك
*तर्जमा* : ऐ अल्लाह अपने ज़िक्र, शुक्र और अच्छी इबादत पर मेरी मदद फरमा।
*✍🏼आसान नेकियां* 168
●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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*_शुक्र करना_*
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : खाना खा कर शुक्र करने वाला उस रोज़ेदार की तरह है जिस ने खाने से सब्र किया हो।
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यक़ीनन शुक्र आला दर्जे की इबादत, अज़ीम सआदत और इस में नेअमतों की हिफाज़त है। शुक्र का एक दर्जा ये है कि बन्दा अल्लाह की अता करदा नेअमतों में गौर करे, उस की अता पर राज़ी हो और उस की किसी नेअमत की नाशुक्री न करे जबकी शुक्र का दुसरा दर्जा ये है कि ज़बान से भी इन नेअमतों का शुक्र करे।
जब भी हमें छोटी बड़ी नेअमत मिले अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिये मषलन नमाज़ वक़्त पर बा जमाअत अदा करने की सआदत मिली तो शुक्र अदा करें, किसी गुनाह से बचने में कामयाब हो गए तो शुक्र अदा करें, शदीद भूक प्यास में खाने को मिल गया तो शुक्र अदा करें, बिमारी से सिह्हत याबी मिली तो शुक्र अदा करें अल गर्ज़ हर वो जाइज़ बात जिस से ख़ुशी या आराम मिले उस पर शुक्र अदा करते रहने की आदत डालनी चाहिये।
शुक्र के लिये कोई अलफ़ाज़ ख़ास नहीं الحمد لله عز وجل कह लीजिये या अपनी मादरी ज़बान में शुक्र अदा कर लीजिये दोनों तरह दुरुस्त है। अगर ज़बान से मौक़ा नहीं मिला तो दिल ही दिल में शुक्र अदा कर लेना चाहिये।
हज़रते अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन मुन्कदिर क़रशि عليه رحما से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ये दुआ किया करते थे :
اٙللّٰهُمّٙ اٙعِنِّىْ عٙلٰى ذِكْرِكٙ وٙشُكْرِكٙ وٙحُسْنِ عِبٙادٙتِك
*तर्जमा* : ऐ अल्लाह अपने ज़िक्र, शुक्र और अच्छी इबादत पर मेरी मदद फरमा।
*✍🏼आसान नेकियां* 168
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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