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Monday 30 July 2018

*वीराने में मुलाक़ात* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते ज़ुन्नुन मिस्री رحمة الله عليه फ़रमाते है की में हज के इरादे से सफर पर निकला तो मेने किसी को अपना हम सफर न बनाया। सफर के दौरान जब में एक बयाबान में पहुंचा तो मेरा ज़ादे राह खत्म हो गया। जब में हलाकत के क़रीब पहुंच गया तो अचानक मुझे सहरा में एक घना दरख्त नज़र आया जिसकी शाखें ज़मीन पर लटक रही थीं। मेने सोचा की मुझे उस दरख्त के साए में बैठ जाना चाहिये यहाँ तक की अल्लाह का हुक्म पूरा हो जाए (यानी मुझे मौत आ जाए)। 

     जब में उस दरख्त के क़रीब पहुंचा और उस के साए में बैठने का इरादा किया तो उसकी टहनियों में से एक टहनी ने मेरे चमड़े का थैला पकड़ लिया जिसकी वजह से उस में बचा पानी बह गया जिससे मुझे बचने की कुछ उम्मीद थी। अब तो मुझे अपनी हलाकत का यक़ीन हो गया, लिहाज़ा में उस दरख्त के साए में गिर कर मलकुल मौत का इंतज़ार करने लगा ताकि वो आ कर मेरी रूह क़ब्ज़ फरमा लें।

     अचानक मेने एक गमगीन आवाज़ सुनी जो किसी ग़मज़दा के दिल से निकल रही थी वो शख्स कह रहा था की "ऐ मेरे अल्लाह, ऐ मेरे आक़ा व मौला! अगर तेरी रिज़ा इसी में है तो इसमें इज़ाफ़ा फरमा, ताकि ऐ अर-हमर्राहीमिन! तू मुझसे राज़ी हो जाए। ये सुन कर में उस आवाज़ की सिम्त चल दिया।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 54

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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