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Sunday 15 July 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
     धोखा देना चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को(2) और हक़ीक़त में धोखा नहीं देते मगर अपनी जानों को और उन्हें शउर (या आभास) नहीं

*तफ़सीर*
     2. यहां से तैरह आयतें मुनाफ़िक़ों (दोग़ली प्रवृत्ति वालों) के लिये उतरीं जो अन्दर से काफिर थे और अपने आप को मुसलमान ज़ाहिर करते थे. अल्लाह तआला ने फ़रमाया “माहुम बिमूमिनीन” वो ईमान वाले नहीं यानी कलिमा पढ़ना, इस्लाम का दावा करना, नमाज़ रोज़े अदा करना मूमिन होने के लिये काफ़ी नहीं, जब तक दिलों में तस्दीक़ न हो.
     इससे मालूम हुआ कि जितने फ़िरक़े (समुदाय) ईमान का दावा करते हैं और कुफ़्र का अक़ीदा रखते हैं सब का यही हुक्म है कि काफ़िर इस्लाम से बाहर हैं.शरीअत में एसों को मुनाफ़िक़ कहते हैं. उनका नुक़सान खुले काफ़िरों से ज्य़ादा है. मिनन नास (कुछ लोग) फ़रमाने में यह इशारा है कि यह गिरोह बेहतर गुणों और इन्सानी कमाल से एसा ख़ाली है कि इसका ज़िक्र किसी वस्फ़ (प्रशंसा) और ख़ूबी के साथ नहीं किया जाता, यूं कहा जाता है कि वो भी आदमी हैं. इस से मालूम हुआ कि किसी को बशर कहने में उसके फ़जा़इल और कमालात (विशेष गुणों) के इन्कार का पहलू निकलता है. इसलिये कुरआन में जगह जगह नबियों को बशर कहने वालों को काफ़िर कहा गया और वास्तव में नबियों की शान में एसा शब्द अदब से दूर और काफ़िरों का तरीक़ा है. कुछ तफसीर करने वालों ने फरमाया कि मिनन नास (कुछ लोगों) में सुनने वालों को आश्चर्य दिलाने के लिये फ़रमाया धोख़ेबाज़, मक्कार और एसे महामूर्ख भी आदमियों में हैं.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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