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Tuesday 17 July 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
     और जो उनसे कहा जाए ज़मीन में फ़साद न करो (5) तो कहते हैं हम तो संवारने वाले हैं,

*तफ़सीर*
     (5) काफ़िरों से मेल जोल, उनकी ख़ातिर दीन में कतर ब्यौंत और असत्य पर चलने वालों की ख़ुशामद और चापलूसी और उनकी ख़ुशी के लिये सुलह कुल्ली (यानी सब चलता है) बन जाना और सच्चाई से दूर रहना, मुनाफ़िक़ की पहचान और हराम है. इसी को मुनाफ़िकों का फ़साद फ़रमाया है कि जिस जल्से में गए, वैसे ही हो गए, इस्लाम में इससे मना फ़रमाया गया है. ज़ाहिर और बातिन (बाहर और अन्दर) का एकसा न होना बहुत बड़ी बुराई है.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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