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Sunday 30 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #194
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑨_*
     या उसकी तरह जो गुज़रा एक बस्ती पर (6) और वह ढई पड़ी थी अपनी छतों पर (7)
बोला इसे कैसे जिलाएगा अल्लाह इसकी मौत के बाद, तो अल्लाह ने उसे मुर्दा रखा सौ बरस फिर ज़िन्दा कर दिया, फ़रमाया तू यहां कितना ठहरा, अर्ज़ की दिन भर ठहरा हूंगा या कुछ कम, फ़रमाया नहीं, तुझे सौ बरस गुज़र गए और अपने खाने और पानी को देख कि अब तक बू न लाया और गधे को देख कि जिसकी हड्डियां तक सलामत न रहीं, और यह इसलिये कि तुझे हम लोगों के वास्ते निशानी करें, और उन हड्डियों को देखकर कैसे हम उन्हें उठान देते फिर उन्हें गोश्त पहनाते हैं. जब यह मामला उसपर ज़ाहिर हो गया बोला मैं ख़ूब जानता हूँ कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है.
*तफ़सीर*
     (6) बहुतों के अनुसार यह घटना हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम की है और बस्ती से मुराद बैतुल मक़दिस है. जब बुख़्तेनस्सर बादशाह ने बैतुल मक़दिस को वीरान किया और बनी इस्त्राईल को क़त्ल किया, गिरफ़तार किया, तबाह कर डाला, फिर हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम वहाँ गुज़रे. आपके साथ एक बरतन खजूर और एक प्याला अंगूर का रस और आप एक गधे पर सवार थे. सारी बस्ती में फिरे, किसी शख़्स को वहाँ न पाया. बस्ती की इमारतों को गिरा हुआ देखा तो आपने आश्चर्य से कहा “अन्ना युहयी हाज़िहिल्लाहो बादा मौतिहा” (कैसे जिलाएगा अल्लाह उसकी मौत के बाद) और आपने अपनी सवारी के गधे को वहाँ बाँध दिया, और आपने आराम फ़रमाया. उसी हालत में आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई और गधा भी मर गया. यह सुबह के वक़्त की घटना है. उससे सत्तर बरस बाद अल्लाह तआला ने फ़ारस के बादशाहों में से एक बादशाह को मुसल्लत किया और वह अपनी फ़ौजें लेकर बैतुल मक़दिस पहुंचा और उसको पहले से भी बेहतर तरीक़े पर आबाद किया और बनी इस्त्राईल में से जो लोग बाक़ी रहे थे, अल्लाह तआला उन्हें फिर यहाँ लाया और वो बैतुल मक़दिस और उसके आस पास आबाद हुए और उनकी तादाद बढ़ती रही. इस ज़माने में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखो से छुपाए रखा और कोई आपको न देख सका. जब आपकी वफ़ात को सौ साल गुज़र गए तो अल्लाह तआला ने आपको ज़िन्दा किया, पहले आँखो में जान आई, अभी तक सारा बदन मुर्दा था. वह आपके देखते देखते ज़िन्दा किया गया. यह घटना शाम के वक़्त सूरज डूबने के क़रीब हुई. अल्लाह तआला ने फ़रमाया, तुम यहाँ कितने दिन ठहरे. आपने अन्दाज़े से अर्ज़ किया कि एक दिन या कुछ कम. आप का ख़याल यह हुआ कि यह उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे. फ़रमाया बल्कि तुम सौ बरस ठहरे. अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखो कि वैसा ही है, उसमें बू तक न आई और अपने गधे को देखो. देखा कि वह मरा हुआ था, गल गया था, अंग बिखर गए थे, हड्डियाँ सफ़ेद चमक रही थीं. आपकी निगाह के सामने उसके अंग जमा हुए, हड्डियों पर गोश्त चढ़ा, गोश्त पर खाई आई, बाल निकले, फिर उसमें रूह फूंकी गई. वह उठ खड़ा हुआ और आवाज़ करने लगा. आपने अल्लाह तआला की क़ुदरत का अवलोकन किया और फ़रमाया मैं ख़ूब जानता हुँ कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर क़ादिर है. फिर आप अपनी उसी सवारी पर सवार होकर अपने महल्ले में तशरीफ़ लाए. सरे अक़दस और दाढ़ी मुबारक के बाल सफ़ेद थे, उम्र वही चालीस साल की थी, कोई आपको पहचानता न था. अन्दाज़े से अपने मकान पर पहुंचे. एक बुढ़िया मिली, जिसके पाँव रह गए थे, वह अन्धी हो गई थी. वह आपके घर की दासी थी. उसने आपको देखा था. आपने उससे पूछा कि यह उज़ैर का मकान है, उसने कहा हाँ. और उज़ैर कहाँ, उन्हें ग़ायब हुए सौ साल गुज़र गए. यह कहकर ख़ूब रोई. आपने फ़रमाया, मैं उज़ैर हुँ. उसने कहा सुब्हानल्लाह, यह कैसे हो सकता है, आपने फ़रमाया, अल्लाह तआला ने मुझे सौ साल मुर्दा रखा, फिर ज़िन्दा किया. उसने कहा, हज़रत उज़ैर दुआ की क़ुबुलियत वाले थे, जो दुआ करते, क़ुबुल होती. आप दुआ कीजिये कि मैं देखने वाली हो जाऊं, ताकि मैं अपनी आँखो से आपको देखूँ आपने दुआ फ़रमाई, वह आँखों वाली हो गई. आपने उसका हाथ पकड़ कर फ़रमाया, उठ ख़ुदा के हुक्म से. यह फ़रमाते ही उसके मारे हुए पाँव दुरूस्त हो गए. उसने आपको देखकर पहचाना और कहा, मैं गवाही देती हुँ कि आप बेशक उज़ैर हैं. वह आपको बनी इस्त्राईल के महल्ले में ले गई. वहाँ एक बैठक में आपके बेटे थे, जिनकी उम्र एक सौ अठारह साल की हो चुकी थी और आपके पोते भी, जो बूढ़े हो चुके थे. बुढ़िया ने बैठक में पुकारा कि यह हज़रत उज़ैर तशरीफ़ ले आए. बैठक में मौजूद लोगों ने उसे झुटलाया. उसने कहा मुझे देखो, आपकी दुआ से मेरी यह हालत हो गई. लोग उठे और आपके पास आए. आपके बेटे ने कहा कि मेरे वालिद साहब के कन्धों के बीच काले बालों का एक हिलाल था. जिस्में मुबारक खोलकर दिखाया गया तो वह मौजूद था. उस ज़माने में तौरात की कोई प्रतिलिपि यानी नुस्ख़ा न रहा था. कोई उसका जानने वाला मौजूद न था. आपने सारी तौरात ज़बानी पढ़ दी. एक शख़्स ने कहा कि मुझे अपने वालिद से मालूम हुआ कि बुख़्तेनस्सर के अत्याचारों के बाद गिरफ़्तारी के ज़माने में मेरे दादा ने तौरात एक जगह दफ़्न कर दी थी उसका पता मुझै मालूम है. उस पते पर तलाश करके तौरात का वह नुस्ख़ा निकाला गया और हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने अपनी याद से जो तौरात लिखाई थी, उससे मुक़ाबला किया गया तो एक अक्षर का फ़र्क़ न था. (जुमल)
     (7) कि पहले छतें गिरीं फिर उन पर दीवारें आ पड़ीं.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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