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Sunday 8 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #183


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*क़ैदख़ाने से निकल कर वज़ीरे खज़ाना ओर वज़ीरे आज़म*
     बादशाह ने मोअज़्ज़ज़िन की एक जमाअत, बेहतरीन सवारियां ओर शाहाना साज़ व सामान ओर नफीस लिबास देकर क़ैदख़ाना भेजा ताकि युसूफ عليه السلام को निहायत ताज़ीम व तकरिम के साथ ऐवाने शाही में लाये। उन लोगों ने युसूफ عليه السلام की खिदमत में हाज़िर होकर बादशाह का पैगाम अर्ज़ किया, आपने क़बूल फ़रमाया क़ैदख़ाने से निकलते वक़्त क़ैदियों के लिये दुआ फ़रमाई। जब क़ैदख़ाने से बाहर तशरीफ़ लाये तो उसके दरवाज़े पर लिखा "यह मुसीबत का घर है, ज़िन्दा लोगो के लिये क़ब्र है, दुश्मनों की बदगोई बल्कि उनके लिये खुश होने का मक़ाम है और सच्चों के इम्तिहान की जगह है।"
     फिर ग़ुस्ल किया, आला लिबास पहना ओर शाही महल्लात की तरफ रवाना हुए। जब किला के पास पहुंचे तो फ़रमाया: "मेरा रब ही काफी है उसकी पनाह बड़ी ओर उसकी सना बरतर ओर उसके सिवा कोई मअबूद नहीं।"
     फिर किला में दाखिल हुए बादशाह के सामने पहुंचे तो ये दुआ की "ऐ मेरे रब तेरे फ़ज़्ल से उसकी भलाई तलब करता हूँ और उसकी ओर दूसरों की बुराई से तेरी पनाह चाहता हूं।"
     जब बादशाह से नज़र मिली तो आपने अरबी में सलाम की बादशाह ने पूछा ये कौन सी ज़बान है? आपने फ़रमाया ये मेरे चचा इस्माइल عليه السلام की ज़बान है। फिर आपने इब्रानी ज़बान में दुआ की, उसने पूछा यह कौनसी ज़बान है? आपने फ़रमाया यह मेरे अब्बा नान याकूब عليه السلام की ज़बान है। बादशाह दोनों ज़बाने नही समझ सका हालांकि वह 70 ज़बाने जानता था। फिर उसने जिस ज़बान में आप عليه السلام से गुफ्तगू की आपने उसी ज़बान में उसे जवाब दिया। उस वक़्त आपकी उम्र 30 साल थी इस उम्र में ये वुसअते उलूम देख कर बादशाह को बहुत हैरत हुई और उसने आपको अपने बराबर जगह दी।
     बादशाह ने दरख्वास्त की कि उसके ख्वाब की ताबीर अपनी ज़बान से सुना दें। आपعليه السلام ने उसको ख्वाब की पूरी तफसील सुना दी। बादशाह को बहुत तअज्जुब हुआ कहने लगा आपने मेरे ख्वाब हु ब हु फरमा दिया, ख्वाब तो अजीब था ही मगर आपका इस तरह बयान फरमा देना ज़्यादा अजीब है। आप ताबीर भी बयान फ़रमा दे।
     आप عليه السلام ने ताबीर फरमाने के बाद फ़रमाया कि अब लाज़िम यह है कि गल्ले जमा किये जायें और उन फराखि के सालों में कसरत से काश्त कराई जाये और गल्ले उनके खोशों में जमा कर लिया जाये और रियाया की पैदावार से पाचवां हिस्सा लिया जाये उससे जो जमा होगा वो मिस्र ओर मिस्र के अतराफ़ के लोगों के लिये काफी होगा। ओर फिर अल्लाह की मख़लूक़ हर तरफ से तेरे पास गल्ला खरीदने आयेगी ओर तेरे यहां इतने ख़ज़ाइन व अमवाल जमा होंगे जो तुझसे पहलों के लिये जमा न हुए। बादशाह ने फरमाया इसका इंतेज़ाम कौन करेगा? आपने फ़रमाया ज़मीन के ख़ज़ाने मेरे हवाले कर दे में उनकी हिफाज़त भी करूँगा ओर अल्लाह के दिये हुए इल्म से उनका बेहतर इंतेज़ाम करूँगा।
     बादशाह ने समझ लिया था कि आपसे ज़्यादा इन मनसब के लायक ओर कोई नहीं हो सकता इसलिये उसने आप के इरशाद के मुताबिक आपको तमाम ख़ज़ाइन का वज़ीर मुक़र्रर कर दिया।
*✍तज़किरतुल अम्बिया* 146
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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