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Friday 10 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-4, आयत, ③⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और हमने फ़रमाया ऐ आदम तू और तेरी बीवी इस जन्नत में रहो और खाओ इसमें से बे रोक टोक जहां तुम्हारा जी चाहे मगर उस पेड़ के पास न जाना(10) कि हद से बढ़ने वालों में हो जाओगे(11)


*तफ़सीर*

     (10) इससे गेहूँ या अंगूर वग़ैरह मुराद हैं. (जलालैन)

     (11) ज़ुल्म के मानी हैं किसी चीज़ को बे-महल वज़अ यह मना है. और अंबियाए किराम मासूम हैं, उनसे गुनाह सरज़द नहीं होता. और अंबियाए किराम को ज़ालिम कहना उनकी तौहीन और कुफ़्र है, जो कहे वह काफ़िर हो जाएगा. अल्लाह तआला मालिक व मौला है जो चाहे फ़रमाए, इसमें उनकी इज़्ज़त है, दूसरे की क्या मजाल कि अदब के ख़िलाफ कोई बात ज़बान पर लाए और अल्लाह तआला के कहे को अपने लिये भी मुनासिब जाने. हमें अदब, इज़्ज़त, फ़रमाँबरदारी का हुक्म फ़रमाया, हम पर यही लाज़िम है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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