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Friday 24 August 2018

आख़िरत के तलबगारों का रास्ता*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ शख्स! तू कब तक गुनाहों पर इसरार करेगा? तू गुनाहों से कब तौबा करेगा? तेरा जिस्म खेलकूद में मशगूल है और तेरा दिल तक़वे से महरूम होने की वजह से बर्बाद हो गया है। तूने अपनी जवानी गफलत में गुज़ार दी और अब बुढापे में अपनी जवानी बर्बाद होने पर रो रहा है?

     बयान की मजलिस में तो तू फौत शुदा अमल पर रोता है लेकिन जब मजलिस से उठता है तो फिर से गुनाहों में जा पड़ता है। ये बयान तुझ पर कोई असर नहीं करता शायद तुझ पर इबरत का दरवाज़ा बन्द हो चुका है। में कब तक तेरे दिल को समझाऊं, हालांकि में जनता हु की तेरा दिल हाज़िर नहीं।

     ऐ गाफिल दिल वाले! तू नसीहत को क्यूँकर समझ सकता है? हाए अफसोस! अगर तुझे बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से धुत्कार दिया गया तो शैतान कितना खुश होगा।

     आह! बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से धुत्कारे हुए बन्दे की वहशत का क्या आलम होगा कि वो क़ुर्बे खुदा वन्दी का कोई ज़रिआ न पा सकेगा।

*✍️आंसुओं का दरिया* 127

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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