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Thursday 16 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

क्या लोगों को भलाई का हुक्म देते हो और अपनी जानों को भूलते हो हालांकि तुम किताब पढ़ते हो तो क्या तुम्हें अक्ल़ नहीं(8)


*तफ़सीर*

     (8) यहूदी उलमा से उनके मुसलमान रिश्तेदारों ने इस्लाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा तुम इस दीन पर क़ायम रहो. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन भी सच्चा और कलाम भी सच्चा. इस पर यह आयत उतरी. एक कथन यह है कि आयत उन यहूदियों के बारे में उतरी जिन्होंने अरब मुश्रिको को हुज़ूर के नबी होने की ख़बर दी थी और हुज़ूर का इत्तिबा (अनुकरण) करने की हिदायत की थी. फिर जब हुज़ूर की नबुव्वत ज़ाहिर हो गई तो ये हिदायत करने वाले हसद (ईर्ष्या) से ख़ुद काफ़िर हो गए. इस पर उन्हें फटकारा गया.(ख़ाज़िन व मदारिक)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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