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Monday 20 August 2018

*इबादत की पाकीज़गी और मीनारे तक़्वा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ए वो शख्स! जिसका सफर दुन्या की तलब में तेज़ी से कट रहा है, तू दुन्या की झूटी उम्मीदों से कब छुटकारा पाएगा? याद रख! तुझे छुटकारा उसी वक़्त मिलेगा जब तू दुन्या से कटेगा, अगर तू आख़िरत का तलब गार है तो सुस्त रफ्तार होते हुए नफा किस तरह पाएगा? 

     तअज्जुब है कि तू फना हो जाने वाली दुन्या की तलाश में तो सफर की तैयारी खूब करता है, हालांकि इस रास्ते मे तो बहुत से रहज़न भी है। तेरी ज़िन्दगी एक अमानत है जिस की जवानी तूने खयानत में गुज़ार दी, उधेड़ उमरी बेकार कामों में ज़ाए कर दी और अब बुढापे में रो रहा है और ये कह रहा है कि "हाए! मेरी उम्र ज़ाए हो गई।" खरीदो फरोख्त में बद दियानती करने वाला भला कैसे कामयाब हो सकता है? 

     दुन्या की तलब में तो तेरा जिस्म बड़ा चाको चौबन्द रहा और अब तलबे आख़िरत में तुझे मुख्तलिफ तकालिफ़ होने लगी है। कब तक राहे तक़्वा पर चलने में सुस्ती करेगा? ऐ गफलत की तारीकी में ज़िन्दगी बसर करने वाले! बुधामे का सूरज तुलुअ हो चुका, मरने से पहले तौबा करने वालों की रफ़ाक़त इख्तियार करले।

*आंसुओं का दरिया* 118

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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