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Sunday 19 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ④⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ याक़ूब की सन्तान, याद करो मेरा वह अहसान जो मैं ने तुमपर किया और यह कि इस सारे ज़माने पर तुम्हें बड़ाई दी (1)


*तफ़सीर*

     (1) अलआलमीन (सारे ज़माने पर) उसके वास्तविक या हक़ीक़ी मानी में नहीं. इससे मुराद यह है कि मैं ने तुम्हारे पूर्वजों को उनके ज़माने वालों पर बुज़ुर्गी दी. यह बुज़ुर्गी किसी विशेष क्षेत्र में हो सकती है, जो और किसी उम्मत की बुज़ुर्गी को कम नहीं कर सकती. इसलिये उम्मते मुहम्मदिया के बारे में इरशाद हुआ “कुन्तुम खै़रा उम्मतिन” यानी तुम बेहतर हो उन सब उम्मतों में जो लोगों में ज़ाहिर हुई (सूरए आले इमरान, आयत 110). (रूहुल बयान, जुमल वग़ैरह)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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