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Saturday 26 November 2016

*जमाअत छोड़ने की सजा* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अकल्मन्द कौन ?_*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सब इबादतों में अहम इबादत नमाज़ है और येही जरीअए नजात और जन्नत की कुन्जी है। इस लीये नमाज़ की भरपूर हिफाज़त करनी चाहिये और इसे वक़्त पर जमाअत के साथ अदा करना चाहिये।
     उमुमन देखा जाता है की लोग घर में ही नमाज़ पढ़ लेते है और मस्जिद की हाज़िरी से कतराते और महज़ सुस्ती की वज्ह से षवाबे अज़ीम से महरूम हो जाते है। याद रखिये ! हर आकिल, बालिग़, आज़ाद, क़ादिर पर जमाअत वाजिब है, बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनाहगार और मुस्तहिके सजा है और कई बार तर्क करे तो फ़ासिक़ मर्दुदश्शहादा (यानी उस की गवाही मक़्बूल नहीं) और उस को सख्त सज़ा दी जाएगी। अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया (खामोश रहे) तो वो भी गुनेहगार हुवे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/582*

     अबू ज़ुबैर फरमाते है : मेने हज़रत जाबिरرضي الله تعالي عنه से सुना, हमारे घर मस्जिद से दूर थे तो हमने अपने घरो को फरोख्त करने का इरादा किया ताकि हम मस्जिद के करीब हो जाए, तो रसूले अकरमﷺ ने हमें मना फरमा दीया और इर्शाद फ़रमाया : तुम्हे हर कदम के बदले षवाब मिलता है।
*✍🏽शाहीह मुस्लिम, 335*

     सहाबाए किराम में बा जमाअत नमाज़ अदा करने का कितना ज़बरदस्त जज़्बा था, वाकई पाचो वक्त एक एक मिल का सफ़र कर के आना आसान काम नहीं।
     इसके बर अक्स हमारा हाल ये है की हमारे घरो के करीब मसाजिद मौजूद है, मस्जिद दूर हो और पैदल जाने में सुस्ती हो तो गाडी, मोटर साइकल के ज़रिए जाने की तरकीब बन सकती है। मस्जिदों में भी ज़रूरी सहुलियात मुयस्सर है मगर बद किस्मती से फिर भी जमाअत के साथ नमाज़ नहीं पढ़ते।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 14*
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