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Tuesday 8 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #71
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*


*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑧⑧_*
और यहूदी बोले हमारे दिलों पर पर्दें पड़े हैं(7)
बल्कि अल्लाह ने उनपर लानत की उनके कुफ़्र के कारण तो उनमें थोड़े ईमान लाते हैं (8)

*तफ़सीर*
     (7) यहूदियों ने यह मज़ाक उड़ाने को कहा था. उनकी मुराद यह थी कि हुज़ूर की हिदायत को उनके दिलों तक राह नहीं है. अल्लाह तआला ने इसका रद्द फ़रमाया कि अधर्मी झूटे हैं. अल्लाह तआला ने दिलों को प्रकृति पर पैदा फ़रमाया है, उनमें सच्चाई क़ुबूल करने की क्षमता रखी है. उनके कुफ़्र की ख़राबी है कि उन्होंने नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत का इक़रार करने के बाद इन्कार किया. अल्लाह तआला ने उनपर लअनत फ़रमाई. इसका असर है कि हक़ (सत्य) क़ुबूल करने की नेअमत से मेहरूम हो गए.
     (8) यह बात दूसरी जगह इरशाद हुई : “बल तबअल्लाहो अलैहा बकिकुफ्रिहिम फ़ला यूमिनूना इल्ला क़लीला” यानी बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उनके दिलों पर मोहर लगा दी है तो ईमान नहीं लाते मगर थोडे. (सूरए निसा, आयत 55).
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