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Wednesday 30 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #90
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①④_*
     और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन (4)
जो अल्लाह की मस्जिदों को रोके उनमें खुदा का नाम लिये जाने से (5)
और उनकी वीरानी मे कोशिश करे (6)
उनको न पहुंचता था कि मस्जिदों में जाएं मगर डरते हुए उनके लिये दुनिया में रूस्वाई है (7)
और उनके लिये आख़िरत में बड़ा अज़ाब (8)

*तफ़सीर*
     (4) यह आयत बैतुल मक़दिस की बेहुरमती या निरादर के बारे में उतरी. जिसका मुख़्तसर वाक़िआ यह है कि रोम के ईसाईयो ने बनी इस्राईल पर चढ़ाई की. उनके सूरमाओं को क़त्ल किया, औरतों बच्चों को क़ैद किया, तौरात शरीफ़ को जलाया, बैतुल मक़दिस को वीरान किया, उसमें गन्दगी डाली, सुवर ज़िबह किये (मआज़ल्लाह). बैतुल मक़दिस हज़रत उमरे फ़ारूक की ख़िलाफ़त तक इसी वीरानी में पड़ा रहा. आपके एहदे मुबारक (समयकाल) में मुसलमानों ने इसको नए सिरे से बनाया.
     एक क़ौल यह भी है कि यह आयत मक्का के मुश्रिकों के बारे में उतरी, जिन्हों ने इस्लाम की शुरूआत में हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके साथियों को काबे में नमाज़ पढ़ने से रोका था, और हुदैबिया की जंग के वक़्त उसमें नमाज़ और हज़ से मना किया था.
     (5) ज़िक्र नमाज़, ख़ुत्बा, तस्बीह, वअज़, नअत शरीफ़, सबको शामिल है. और अल्लाह के ज़िक्र को मना करना हर जगह बुरा है, ख़ासकर मस्जिदों में, जो इसी काम के लिये बनाई जाती हैं. जो शख़्स मस्जिद को ज़िक्र और नमाज़ से महरूम करदे, वह मस्जिद का वीरान करने वाला और बहुत बड़ा ज़ालिम है.
     (6) मस्जिद की वीरानी जैसे ज़िक्र और नमाज़ के रोकने से होती है, ऐसी ही उसकी इमारत को नुक़सान पहुंचाने और निरादर करने से भी.
     (7) दुनिया में उन्हें यह रूस्वाई पहुंची कि क़त्ल किये गए, गिरफ़्तार हुए, वतन से निकाले गए, ख़िलाफ़ते फ़ारूक़ी और उस्मानी में मुल्के शाम उनके क़ब्ज़े से निकल गया, बैतुल मक़दिस से ज़िल्लत के साथ निकाले गए.
     (8) सहाबए किराम रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ एक अंधेरी रात सफ़र में थे. क़िबले की दिशा मालूम न हो सकी. हर एक शख़्स ने जिस तरफ़ उस का दिल जमा, नमाज़ पढ़ी. सुबह को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाल अर्ज़ किया तो यह आयत उतरी. इससे मालूम हुआ कि क़िबले की दिशा मालूम न हो सके तो जिस तरफ़ दिल जमा कि यह क़िबला है, उसी तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़े.
     इस आयत के उतरने के कारण के बारे में दूसरा क़ौल यह है कि यह उस मुसाफ़िर के हक़ में उतरी, जो सवारी पर नफ़्ल अदा करे, उसकी सवारी जिस तरफ़ मुंह फेर ले, उस तरफ़ उसकी नमाज़ दुरूस्त है. बुख़ारी और मुस्लिम की हदीसों में यह साबित है.
     एक क़ौल यह है कि जब क़िबला बदलने का हुक्म दिया गया तो यहूदियों ने मुसलमानों पर ताना किया. उनके रद में यह आयत उतरी. बताया गया कि पूर्व पश्चिम सब अल्लाह का है, जिस तरफ़ चाहे क़िबला निश्चित करे. किसी को ऐतिराज़ का क्या हक़ ? (ख़ाज़िन).
     एक क़ौल यह है कि यह आयत दुआ के बारे में उतरी है. हुज़ूर से पूछा गया कि किस तरफ़ मुंह करके दुआ की जाए. इसके जवाब में यह आयत उतरी. एक क़ौल यह है कि यह आयत हक़ से गुरेज व फ़रार में है. और ” ऐनमा तुवल्लु” (तुम जिधर मुंह करो) का ख़िताब उन लोगों को है जो अल्लाह के ज़िक्र से रोकते और मस्जिदों की वीरानी की कोशिश करते हैं. वो दुनिया की रूसवाई और आख़िरत के अज़ाब से कहीं भाग नहीं सकते, क्योंकि पूरब पश्चिम सब अल्लाह का है, जहाँ भागेंगे, वह गिरफ़्तार फ़रमाएगा. इस संदर्भ में “वज्हुल्लाह” का मतलब ख़ुदा का क़ुर्ब और हुज़ूर है. (फ़त्ह).
     एक क़ौल यह भी है कि मानी यह हैं कि अगर काफ़िर ख़ानए काबा में नमाज़ से मना करें तो तुम्हारे लिये सारी ज़मीन मस्जिद बना दी गई है, जहाँ से चाहे क़िबले की तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ो.
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