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Monday 28 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #88
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①①_*
     और किताब वाले बोले हरगिज़ जन्नत में न जाएगा मगर वह जो यहूदी या ईसाई हो (12)
ये उनकी ख्य़ालबंदिया हैं, तुम फ़रमाओ लाओ अपनी दलील (13)
अगर सच्चे हो

*तफ़सीर*
     (12) यानी यहूदी कहते हैं कि जन्नत में सिर्फ़ वही दाख़िल होंगे, और ईसाई कहते हैं कि फ़क़त ईसाई जाएंगे, और ये मुसलमानों को दीन से हटाने के लिये कहते हैं. जैसे स्थगन आदेश वग़ैरह के तुच्छ संदेह उन्होंने इस उम्मीद पर पेश किये थे कि मुसलमानों को अपने दीन में कुछ संदेह हो जाए. इसी तरह उनको जन्नत से मायूस करके इस्लाम से फेरने की कोशिश करते हैं. चुनांचे पारा के अन्त में उनका यह कथन दिया हुआ है “वक़ालू कूनू हूदन औ नसारा तहतदू” (यानी और किताब वाले बोले यहूदी या ईसाई हो जाओ, राह पा जाओगे). अल्लाह तआला उनके इस बातिल ख़्याल का रद फ़रमाता है.
     (13) इस आयत से मालूम हुआ कि इन्कार का दावा करने वाले को भी दलील या प्रमाण लाना ज़रूरी है. इसके बिना दावा बातिल और झूठा होगा.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①②_*
     हाँ क्यों नहीं जिसने अपना मुंह झुकाया अल्लाह के लिये और वह नेकी करने वाला है(14)
तो उसका नेग उसके रब के पास है, और उन्हें न कुछ अन्देशा हो और न कुछ ग़म (15)

*तफ़सीर*
     (14) चाहे किसी ज़माने, किसी नस्ल, किसी क़ौम का हो.
     (15) इसमें इशारा है कि यहूदी और ईसाईयों का यह दावा कि जन्नत में फ़क़त वही मालिक हैं, बिल्कुल ग़लत है, क्योंकि जन्नत में दाख़िला सही अक़ीदे और नेक कर्मों पर आधारित है, और यह उनको उपलब्ध नहीं.
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