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Monday 2 July 2018

*क़ुरआन का तर्जमा व तफ़्सीर*


*कन्ज़ुल ईमान*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*सूरए फातेहा* #04

*इस्तिआजा*
     क़ुरआन शरीफ़ पढ़ने से पहले “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” (अल्लाह की पनाह मांगता हूँ भगाए हुए शैतान से) पढ़ना प्यारे नबी का तरीक़ा यानी सुन्नत है. (ख़ाज़िन) लेकिन शागिर्द अगर उस्ताद से पढ़ता हो तो उसके लिए सुन्नत नहीं है. (शामी) नमाज़ में इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये सना यानी सुब्हानकल्लाहुम्मा पढ़ने के बाद आहिस्ता से “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” पढ़ना सुन्नत हैं.

*तस्मियह*
    बीस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम क़ुरआने पाक की आयत है मगर सूरए फ़ातिहा या किसी और सूरत का हिस्सा नहीं है, इसीलिये नमाज़ में ज़ोर के साथ् न पढ़ी जाए. बुखारी और मुस्लिम शरीफ़ में लिखा है कि प्यारे नबी हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और हज़रत सिद्दीक़ और फ़ारूक़ (अल्लाह उनसे राज़ी) अपनी नमाज़ “अलहम्दोलिल्लाहेरब्बिलआलमीन “यानी सूरए फ़ातिहा की पहली आयत से शुरू करते थे. तरावीह (रमज़ान में रात की ख़ास नमाज़) में जो ख़त्म किया जाता है उसमें कहीं एक बार पूरी बिस्मिल्लाह ज़ोर से ज़रूर पढ़ी जाए ताकि एक आयत बाक़ी न रह जाए.
    क़ुरआन शरीफ़ की हर सूरत बिस्मिल्लाह से शुरू की जाए, सिवाय सूरए बराअत या सूरए तौबह के. सूरए नम्ल में सज्दे की आयत के बाद जो बिस्मिल्लाह आई है वह मुस्तक़िल आयत नहीं है बल्कि आयत का टुकड़ा है. इस आयत के साथ ज़रूर पढ़ी जाएगी, आवाज़ से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में आवाज़ के साथ और खा़मोशी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में ख़ामोशी से. हर अच्छे काम की शुरूआत बिस्मिल्लाह पढ़कर करना अच्छी बात है. बुरे काम पर बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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