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Thursday 15 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#35

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③④_*
और (याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सिजदा करो तो सबने सिजदा किया सिवाए इबलीस (शैतान) के कि इन्कारी हुआ और घमन्ड किया ओर काफ़िर हो गया.

*तफ़सीर*
     अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सारी सृष्टि का नमूना और रूहानी व जिस्मानी दुनिया का मजमूआ बनाया और फ़रिश्तों के लिये कमाल हासिल करने का साधन किया तो उन्हें हुक्म फ़रमाया कि हज़रत आदम को सज्दा करें क्योंकि इसमें शुक्रगुज़ारी और हज़रत आदम के बड़प्पन के एतिराफ़ और अपने कथन की माफ़ी की शान पाई जाती है.
     कुछ विद्वानो ने कहा है कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम को पैदा करने से पहले ही सज्दे का हुक्म दिया था, उसकी सनद (प्रमाण) यह आयत है : “फ़ इज़ा सव्वैतुहू व नफ़ख़्तो फ़ीहे मिर रूही फ़क़ऊ लहू साजिदीन” (सूरए अल-हिजर, आयत 29) यानी फिर जब मैं उसे ठीक बनालूं और उसमें अपनी तरफ़ की ख़ास इज़्ज़त वाली रूह फूंकूं तो तुम उसके लिये सज्दे में गिरना.
*✍🏽बैज़ावी*
     सज्दे का हुक्म सारे फ़रिश्तों को दिया गया था, यही सब से ज़्यादा सही है.
*✍🏽ख़ाज़िन*
     सज्दा दो तरह का होता है एक इबादत का सज्दा जो पूजा के इरादे से किया जाता है, दूसरा आदर का सज्दा जिससे किसी की ताज़ीम मंजूर होती है न कि इबादत. इबादत का सज्दा अल्लाह तआला के लिए ख़ास है, किसी और के लिये नहीं हो सकता न किसी शरीअत में कभी जायज़ हुआ. यहाँ जो मुफ़स्सिरीन इबादत का सज्दा मुराद लेते हैं वो फ़रमाते हैं कि सज्दा ख़ास अल्लाह तआला के लिए था और हज़रत आदम क़िबला बनाए गए थे. मगर यह तर्क कमज़ोर है क्योंकि इस सज्दे से हज़रत आदम का बड़प्पन, उनकी बुज़ुर्गी और महानता ज़ाहिर करना मक़सूद थी. जिसे सज्दा किया जाए उस का सज्दा करने वाले से उत्तम होना कोई ज़रूरी नहीं, जैसा कि काबा हूज़ुर सैयदुल अंबिया का क़िबला और मस्जूद इलैह (अर्थात जिसकी तरफ़ सज्दा हो) है, जब कि हुज़ूर उससे अफ़ज़ल (उत्तम) है.
     दूसरा कथन यह है कि यहां इबादत का सज्दा न था बल्कि आदर का सज्दा था और ख़ास हज़रत आदम के लिये था, ज़मीन पर पेशानी रखकर था न कि सिर्फ़ झुकना. यही कथन सही है, और इसी पर सर्वानुमति है.
*✍🏽मदारिक*
     आदर का सज्दा पहली शरीअत में जायज़ था, हमारी शरीअत में मना किया गया. अब किसी के लिये जायज़ नहीं क्योंकि जब हज़रत सलमान (अल्लाह उनसे राज़ी हो) ने हूज़ुर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सज्दा करने का इरादा किया तो हूजु़र ने फ़रमाया मख़लूक़ को न चाहिये कि अल्लाह के सिवा किसी को सज्दा करें.
*✍🏽मदारिक*
     फ़रिश्तों में सबसे पहले सज्दा करने वाले हज़रत जिब्रील हैं, फिर मीकाईल, फिर इसराफ़ील, फिर इज़्राईल, फिर और क़रीबी फ़रिश्तें. यह सज्दा शुक्रवार के रोज़ ज़वाल के वक़्त से अस्र तक किया गया. एक कथन यह भी है कि क़रीबी फ़रिश्तें सौ बरस और एक कथन में पाँच सौ बरस सज्दे में रहे.
     शैतान ने सज्दा न किया और घमण्ड के तौर पर यह सोचता रहा कि वह हज़रत आदम से उच्चतर है, और उसके लिये सज्दे का हुक्म (मआज़ल्लाह) हिक़मत (समझदारी) के ख़िलाफ़ है. इस झूटे अक़ीदे से वह काफिर हो गया.
     आयत में साबित है कि हज़रत आदम फ़रिश्तों से ऊपर हैं कि उनसे उन्हें सज्दा कराया गया. घमण्ड बहुत बुरी चीज़ है. इससे कभी घमण्डी की नौबत कुफ़्र तक पहुंचती है.
*✍🏽बैज़ावी व जुमल*
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