#24
*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧,①⑨_*
बहरे, गूंगे, अन्धे, तो वो फिर आने वाले नहीं.
या जैसे आसमान से उतरता पानी कि उसमें अंधेरियां हैं और गरज और चमक(1)
अपने कानों में उंगलियां ठूंस रहे हैं,कड़क के कारण मौत के डर से(2)
और अल्लाह काफ़िरों को घेरे हुए है(3)
*तफ़सीर*
(1) हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदने वालों की यह दूसरी मिसाल है कि जैसे बारिश ज़मीन की ज़िन्दग़ी का कारण होती है और उसके साथ खौफ़नाक अंधेरियां और ज़ोरदार गरज और चमक होती है, उसी तरह क़ुरआन और इस्लाम दिलों की ज़िन्दग़ी का सबब हैं और कुफ़्र, शिर्क, निफ़ाक़ दोगलेपन का बयान तारीकी (अंधेरे) से मिलता जुलता है.
जैसे अंधेरा राहगीर को मंज़िल तक पहुंचने से रोकता है, एैसे ही कुफ़्र और निफ़ाक़ राह पाने से रोकते हैं. और सज़ाओ का ज़िक्र गरज से और हुज्जतों का वर्णन चमक से मिलते जुलते हैं.
मुनाफ़िक़ों में से दो आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास से मुश्रिकों की तरफ भागे, राह में यही बारिश आई जिसका आयत में ज़िक्र है. इसमें ज़ोरदार गरज, कड़क और चमक थी. जब गरज होती तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि यह कानों को फाड़ कर मार न डाले, जब चमक होती चलने लगते, जब अंधेरी होती, अंधे रह जाते, आपस में कहने लगे _ ख़ुदा ख़ैर से सुबह करे तो हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर होकर अपने हाथ हुज़ूर के मुबारक हाथों में दे दें. फिर उन्होंने एेसा ही किया और इस्लाम पर साबित क़दम रहे.
उनके हाल को अल्लाह तआला ने मुनाफ़िक़ों के लिये कहावत बनाया जो हुज़ूर की पाक मज्लिस में हाज़िर होते तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि कहीं हुज़ूर का कलाम उनपर असर न कर जाए जिससे मर ही जाएं और जब उनके माल व औलाद ज्यादा होते और फ़तह और ग़नीमत का माल मिलता तो बिजली की चमक वालों की तरह चलते और कहते कि अब तो मुहम्मद का दीन ही सच्चा है. और जब माल और औलाद का नुक़सान होता और बला आती तो बारिश की अंधेरियों में ठिठक रहने वालों की तरह कहते कि यह मुसीबतें इसी दीन की वजह से हैं और इस्लाम से हट जाते.
(2) जैसे अंधेरी रात में काली घटा और बिजली की गरज _ चमक जंगल में मुसाफिरों को हैरान करती हो और वह कड़क की भयानक आवाज़ से मौत के डर से माने कानों में उंगलियां ठूंसते हों.
ऐसे ही काफ़िर क़ुरआन पाक के सुनने से कान बन्द करते हैं और उन्हें ये अन्देशा या डर होता है कि कहीं इसकी दिल में घर कर जाने वाली बातें इस्लाम और ईमान की तरफ़ खींच कर बाप दादा का कुफ़्र वाला दीन न छुड़वा दें जो उनके नज्दीक मौत के बराबर है.
(3) इसलियें ये बचना उन्हें कुछ फ़ायदा नहीं दे सकता क्योंकि वो कानों में उंगलियां ठूंस कर अल्लाह के प्रकोप से छुटकारा नहीं पा सकते.
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧,①⑨_*
बहरे, गूंगे, अन्धे, तो वो फिर आने वाले नहीं.
या जैसे आसमान से उतरता पानी कि उसमें अंधेरियां हैं और गरज और चमक(1)
अपने कानों में उंगलियां ठूंस रहे हैं,कड़क के कारण मौत के डर से(2)
और अल्लाह काफ़िरों को घेरे हुए है(3)
*तफ़सीर*
(1) हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदने वालों की यह दूसरी मिसाल है कि जैसे बारिश ज़मीन की ज़िन्दग़ी का कारण होती है और उसके साथ खौफ़नाक अंधेरियां और ज़ोरदार गरज और चमक होती है, उसी तरह क़ुरआन और इस्लाम दिलों की ज़िन्दग़ी का सबब हैं और कुफ़्र, शिर्क, निफ़ाक़ दोगलेपन का बयान तारीकी (अंधेरे) से मिलता जुलता है.
जैसे अंधेरा राहगीर को मंज़िल तक पहुंचने से रोकता है, एैसे ही कुफ़्र और निफ़ाक़ राह पाने से रोकते हैं. और सज़ाओ का ज़िक्र गरज से और हुज्जतों का वर्णन चमक से मिलते जुलते हैं.
मुनाफ़िक़ों में से दो आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास से मुश्रिकों की तरफ भागे, राह में यही बारिश आई जिसका आयत में ज़िक्र है. इसमें ज़ोरदार गरज, कड़क और चमक थी. जब गरज होती तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि यह कानों को फाड़ कर मार न डाले, जब चमक होती चलने लगते, जब अंधेरी होती, अंधे रह जाते, आपस में कहने लगे _ ख़ुदा ख़ैर से सुबह करे तो हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर होकर अपने हाथ हुज़ूर के मुबारक हाथों में दे दें. फिर उन्होंने एेसा ही किया और इस्लाम पर साबित क़दम रहे.
उनके हाल को अल्लाह तआला ने मुनाफ़िक़ों के लिये कहावत बनाया जो हुज़ूर की पाक मज्लिस में हाज़िर होते तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि कहीं हुज़ूर का कलाम उनपर असर न कर जाए जिससे मर ही जाएं और जब उनके माल व औलाद ज्यादा होते और फ़तह और ग़नीमत का माल मिलता तो बिजली की चमक वालों की तरह चलते और कहते कि अब तो मुहम्मद का दीन ही सच्चा है. और जब माल और औलाद का नुक़सान होता और बला आती तो बारिश की अंधेरियों में ठिठक रहने वालों की तरह कहते कि यह मुसीबतें इसी दीन की वजह से हैं और इस्लाम से हट जाते.
(2) जैसे अंधेरी रात में काली घटा और बिजली की गरज _ चमक जंगल में मुसाफिरों को हैरान करती हो और वह कड़क की भयानक आवाज़ से मौत के डर से माने कानों में उंगलियां ठूंसते हों.
ऐसे ही काफ़िर क़ुरआन पाक के सुनने से कान बन्द करते हैं और उन्हें ये अन्देशा या डर होता है कि कहीं इसकी दिल में घर कर जाने वाली बातें इस्लाम और ईमान की तरफ़ खींच कर बाप दादा का कुफ़्र वाला दीन न छुड़वा दें जो उनके नज्दीक मौत के बराबर है.
(3) इसलियें ये बचना उन्हें कुछ फ़ायदा नहीं दे सकता क्योंकि वो कानों में उंगलियां ठूंस कर अल्लाह के प्रकोप से छुटकारा नहीं पा सकते.
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